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निडरता: एंजायटी, ओवर थिंकिंग, और नेगेटिव थिंकिंग का समाधान

निडरता: एंजायटी, ओवर थिंकिंग, और नेगेटिव थिंकिंग का समाधान आज के युग में, जहाँ जीवन की गति तेज है और प्रतिस्पर्धा कठिन, वहाँ एंजायटी, ओवर थिंकिंग, और नेगेटिव थिंकिंग जैसी समस्याएँ आम हो गई हैं। ये समस्याएँ हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करती हैं और हमें अपनी पूरी क्षमता से जीने से रोकती हैं। लेकिन इन समस्याओं का एक समाधान है, और वह है - निडरता। डर का सामना करना डर हमारे नकारात्मक विचारों का मुख्य स्रोत है। यह हमें अनिश्चितता, असफलता, और अस्वीकृति के प्रति संवेदनशील बनाता है। लेकिन जब हम निडर होते हैं, तो हम इन भयों का सामना कर सकते हैं और उन्हें पार कर सकते हैं। निडरता का अभ्यास निडरता का अभ्यास करने के लिए, हमें अपने विचारों को चुनने की शक्ति को पहचानना होगा। जब भी नकारात्मक विचार आएं, हमें खुद से पूछना होगा - "क्या इस विचार पर सोचने से मेरी स्थिति में कोई सकारात्मक बदलाव आएगा?" अगर उत्तर 'नहीं' है, तो हमें उस विचार को छोड़ देना चाहिए। निडरता की शक्ति निडरता हमें उन चीजों को करने का साहस देती है जो हमें सही लगती हैं, भले ही वे कठिन क्यों न हों। यह हमें अपने विचारों को

प्रेम: जीवन का अद्वितीय एहसास

प्रेम: जीवन का अद्वितीय एहसास प्रेम एक ऐसी अवस्था है जो हमें बाहरी दुनिया के परिवर्तनों से परे ले जाती है। यह एक अचल अवस्था है जो भौतिक और आत्मिक दोनों स्तरों पर हमारे अनुभवों को समृद्ध करती है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम प्रेम के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि प्रेम कैसे हमारे जीवन को आकार देता है। प्रेम की अचलता प्रेम एक ऐसी भावना है जो समय के साथ नहीं बदलती। यह एक सत्य है जिसे हमारी अंतरात्मा ने स्वीकार किया है। भले ही बाहरी दुनिया में सब कुछ परिवर्तित हो जाए, प्रेम की भावना स्थिर रहती है। यह हमें दुख के समय में भी सुख की अनुभूति देता है और जब कुछ नहीं होता, तब भी सब कुछ होने का आभास कराता है। प्रेम का सुरक्षा कवच प्रेम एक सुरक्षा कवच की तरह है जो हमें बाहरी संघर्षों से बचाता है। यह हमें आत्मिक तौर पर खुश और शांत रखता है, चाहे बाहरी परिस्थितियाँ कैसी भी हों। प्रेम के इस सुरक्षा कवच के कारण, बाहरी तौर पर चीजें परिवर्तित होती रहेंगी, लेकिन आंतरिक तौर पर जो सुख, संतोष, और शांति है, वह सदा बनी रहेगी। प्रेम की निस्वार्थता प्रेम एक निस्वार्थ इच्छा है। यह एक ऐसा

प्रश्न यानी क्वेश्चन क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है हमारे जीवन में?

प्रश्न यानी क्वेश्चन क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है हमारे जीवन में? प्रश्न एक ऐसी भाषायी अभिव्यक्ति है जिसका उपयोग हम सूचना या जानकारी प्राप्त करने या देने के लिए करते हैं, शंका का समाधान करने या जिज्ञासा को शांत करने के लिए करते हैं। प्रश्न नई शुरुआत की उम्मीद के साथ-साथ एक बेहतर भविष्य तरफ ले जाने वाला कारक है। प्रश्न अर्थात ज्ञान अर्जित करने की संभावना, संभावना एक उज्जवल और विकसित जीवन शैली की। भारतीय संस्कृति में प्रश्नों का बहुत महत्व है। यहाँ तक कि कुछ विचारकों का मानना है कि भाषा का आविष्कार ही प्रश्न करने के लिए हुआ है। प्रश्नोत्तर परंपरा को सत्य की खोज के एक प्रमुख उपकरण के रूप में देखा जाता है, और इसे विकास और ज्ञान के मार्ग में एक अहम् भूमिका माना जाता है। जीवन में प्रश्नों की उपयोगिता अत्यंत व्यापक है। वे हमें नई दिशाओं में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं, समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करते हैं, और हमारी समझ को गहरा करते हैं। प्रश्न हमें अपने आस-पास की दुनिया और खुद को बेहतर समझने का अवसर देते हैं। वे हमें चिंतनशील बनाते हैं और हमारी जिज्ञासा को जागृत करते हैं, जो कि आत्म-

पुरुषार्थ और कार्य में क्या अंतर है? पुरुषार्थ को पुरुषार्थ क्यों कहते हैं?

पुरुषार्थ और कार्य में क्या अंतर है? पुरुषार्थ को पुरुषार्थ क्यों कहते हैं? पुरुषार्थ शब्द किसी लिंग विशेष के लिए नहीं, हालांकि उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। पुरुषार्थ अर्थात वह कार्य जो शास्त्रों के अनुकूल अर्थात अनुसार हो, जिसमें नीति, नियम, धर्म का पालन हो, इसका उद्देश्य सात्विक हो, और उससे उत्पन्न होने वाला फल सिर्फ उसे व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि उसके परिवार, उसके समाज, और उसके देश के लिए भी लाभकारी हो। ऐसे कार्यों को पुरुषार्थ कहते हैं।  पुरुषार्थ का अर्थ वास्तव में उन कार्यों से है जो न केवल व्यक्तिगत उन्नति के लिए होते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए भी होते हैं। यह धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के चार पुरुषार्थों के माध्यम से व्यक्त होता है, जो एक संतुलित और सार्थक जीवन के लिए आवश्यक हैं। धर्म का पालन करते हुए अर्थ कमाना, उचित ढंग से काम की पूर्ति करना, और अंततः मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रयास करना, यही पुरुषार्थ की अवधारणा है। इसमें नीति और नियमों का पालन करना, सात्विक जीवनशैली अपनाना, और ऐसे कार्य करना शामिल है जिनसे सभी को लाभ हो। इस द

मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं? कौन-कौन से प्रकार का मनुष्य है यह कैसे पहचाना जा सकता है?

मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं? कौन, -कौन से प्रकार का मनुष्य है यह कैसे पहचाना जा सकता है? आपको पता है इस पृथ्वी पर बहुत सारे रंग, भेद, भाषा, वाणी न जाने कितने अलग-अलग प्रकार के लोग रहते हैं। पर सच तो यह है इस पृथ्वी पर केवल दो ही प्रकार के व्यक्ति है जिन्हें आप इस पोस्ट के माध्यम से जानेंगे  विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं के बीच, अक्सर यह कहा जाता है कि मनुष्यों को दो मुख्य प्रकारों में बांटा जा सकता है: सकारात्मक या निर्माणात्मक व्यक्ति (Constructive or Positive Individuals), ये वे लोग होते हैं जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करते हैं। उनके गुणधर्म में सहानुभूति, सहयोग, और उदारता शामिल होती है। वे अपने और दूसरों के जीवन में सुधार और विकास के लिए प्रयासरत रहते हैं। नकारात्मक या विध्वंसात्मक व्यक्ति (Destructive or Negative Individuals), इसके विपरीत, ये वे लोग होते हैं जो नकारात्मकता और विध्वंस की ओर झुकाव रखते हैं। उनके गुणधर्म में ईर्ष्या, क्रोध, और स्वार्थ शामिल हो सकते हैं। वे अक्सर समाज में तनाव और विभाजन पैदा करते हैं। हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम मान

क्षमा, निडरता और त्याग को क्यों कहते हैं जीवन का अमृत।

क्षमा, निडरता और त्याग को क्यों कहते हैं जीवन का अमृत।  क्षमा, हमारे अंदर उन भावनाओं को उत्पन्न करती है, जिससे हम दूसरों की भावनाओं को, मजबूरीओं को समझ सकते हैं। क्षमा, हमें दूसरों को समझने की भावना या कह सकते हैं, क्षमता प्रदान करती है। निडरता, हमें नीति, न्याय, धर्म पर अडिग रहते हुए हमें सत्य निष्ठ, सत्य पारायण बने रहने की क्षमता प्रदान करता है। त्याग, जब हम किसी कार्य में सफल हो जाते हैं तो, हमारे अंदर अहंकार, अहम और न जाने कितने विकार उत्पन्न होते हैं। त्याग, उन विकारों को खत्म करने की क्षमता देता है, समझ प्रदान करता है। जब हम किसी कार्य में नाकाम हो जाते हैं, असफल हो जाते हैं, तब हमारे अंदर भय, डर, क्रोध, लोग और न जाने कितने प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं, उन सारे विकारों से त्याग हमारी रक्षा कर लेता है। इन सारे विकारों की भूल भुलैया से बाहर निकलने की समझ और शक्ति प्रदान करता है। एक छोटे से वाक्य में अगर कहना चाहूं तो, वह यह हो सकता है कि, त्याग हम मनुष्यों के लिए रिसेट का बटन है। त्याग ही वह गुण है, जो हमें, हमारे जीवन को रिसेट करता है। और नई शुरुआत करने की प्रेरणा देता है। म

मिल गया वह कारण, जो लगता तो अच्छा है, पर हमारे विनाश का कारण है।

मिल गया वह कारण, जो लगता तो अच्छा है, पर हमारे विनाश का कारण है। आपको पता है कभी लगता है जीवन एक पुस्तक की तरह है। कभी लगता है, जीवन एक शिक्षक की तरह है। क्योंकि हर समय, हर घड़ी, यह कुछ ना कुछ ऐसी नया सीखाती है, नवीनता का बोध कराती है। और ऐसी चीज समझाती है। जिसे देखकर, सोच कर समझ कर आश्चर्य चकित रह जाता हूं। जीवन वास्तव में एक पुस्तक की तरह है जिसमें हर अध्याय नई कहानियाँ और सबक लेकर आता है। और एक शिक्षक की तरह, जीवन हमें अनुभवों के माध्यम से सिखाता है, जिससे हम बढ़ते और विकसित होते हैं। यह अनुभव हमें विभिन्न भावनाओं से गुजरने का मौका देते हैं, जैसे कि आश्चर्य, खुशी, दुःख, और भी बहुत कुछ। आज मैंने अपने जीवन से सीखा अभिमान द्वेष, घृणा, क्रोध का मूल कारण क्या है। वह कौन सी चीज है, जो इन्हें पोषित करती है। और हमारे अंदर इन्हें जीवित रखती है। मैंने आज इसे जाना और समझा। अभिमान, द्वेष, घृणा, क्रोध आध्यात्मिक तौर पर इनका एक ही कारण है, श्रेष्ठता का भाव, खुद को दूसरों से ऊपर या श्रेष्ठ समझने का भाव। इन सारे विकारों को उत्पन्न करता है, पोषित करता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, अभिमान, द्वेष, घृण

जब इंसान का विनाश होने वाला होता है तो वहां कौन-कौन से कार्य करता है?

जब इंसान का विनाश होने वाला होता है तो वहां कौन-कौन से कार्य करता है? जब किसी व्यक्ति का विनाश निकट होता है, तो अक्सर उसके व्यवहार में कुछ परिवर्तन देखे जा सकते हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार, जब किसी व्यक्ति का बुरा समय आने वाला होता है, तो वह अपने हित की बातें भी नहीं सुनता है³। ऐसे व्यक्ति के विनाश के कुछ संकेत निम्नलिखित हो सकते हैं:  व्यक्ति अहंकारी हो जाता है और अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है।  व्यक्ति अनुशासन और नियमों का पालन नहीं करता।  व्यक्ति ज्ञान की उपेक्षा करता है और सीखने की इच्छा नहीं रखता।  व्यक्ति दूसरों के प्रति असम्मानजनक और दुर्व्यवहार करता है।  व्यक्ति धर्म और नैतिकता के मार्ग से भटक जाता है। ये संकेत व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी जीवन में उसके विनाश की ओर अग्रसर होने का सूचक हो सकते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने आचरण को सदैव सकारात्मक और धर्मिक बनाए रखें। आत्म-चिंतन और आत्म-सुधार की प्रक्रिया में रहकर हम अपने जीवन को उत्तम दिशा में ले जा सकते हैं।  आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, जब किसी व्यक्ति का पतन होने वाला होता है, तो वह अक्सर नीति और धर्म युक्त व

क्या आप चाहते हैं अपने जीवन में स्थिरता (स्टेबिलिटी) को ? तो अपना ना होगा इन तरीकों को।

क्या आप चाहते हैं अपने जीवन में स्थिरता (स्टेबिलिटी) को ? तो अपना ना होगा इन तरीकों को। यह इकलौता वीडियो ही, आपको उन प्रश्नों के उत्तर देगा, जिन्हें ना जानने के कारण आप उलझे पड़े हैं, जीवन के संघर्ष में, और नहीं स्थापित और स्थिर कर पा रहे हैं, जीवन में शांति और समृद्धि को। जीवन में स्थिरता यानी स्टेबिलिटी आ जाए। जीवन मे सुख के साथ समृद्धि मैं सदा बढ़ोतरी होती रहे। तो त्यागना होगा, उन सबको जो नश्वर है। खत्म करना होगा मोह को, उनके प्रति जो नश्वर है। स्वीकार करना होगा, अपनाना होगा और अपने अंदर उसे स्थिर करना होगा जो अनश्वर है, जिसका नाश नहीं किया जा सकता। जीवन में स्थिरता यानी स्टेबिलिटी के लिए, जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए नश्वर वस्तुओं का त्याग और अनश्वर मूल्यों को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नश्वर चीजें, जैसे कि भौतिक संपत्ति और अस्थायी सुख, अंततः नष्ट हो जाती हैं। इसके विपरीत, अनश्वर मूल्य जैसे कि धर्म (कर्तव्य/नैतिकता), शक्ति, क्षमा, निर्भयता, और त्याग ऐसे गुण हैं जो न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक होते हैं, बल्कि समाज को भी आदर्श बनाने में योगदान करते हैं। धर्म और शक

शक्ति और पराक्रम को कैसे पहचाने? शक्ति और पराक्रम की पहचान क्या है?

 शक्ति और पराक्रम को कैसे पहचाने? शक्ति और पराक्रम की पहचान क्या है? धर्मात्मा और शक्तिशाली व्यक्ति की पहचान के लिए धर्म का होना वास्तव में आवश्यक है। श्री राम का जीवन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिन्होंने अपने आदर्शों और धर्म के प्रति समर्पण के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। उनके जीवन की घटनाएँ और उनके द्वारा लिए गए निर्णय हमें यह सिखाते हैं कि धर्म का पालन करते हुए भी शक्तिशाली बना जा सकता है। अहंकार की चादर को हटाना और धर्म को समझना व्यक्ति के आत्म-विकास के लिए भी जरूरी है। जब हम अहंकार को त्यागते हैं और धर्म के प्रति खुले रहते हैं, तब हम न केवल अपने आप को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि समाज को भी सकारात्मक दिशा में ले जा सकते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर लाभकारी है। श्री राम और सीता जैसे पात्रों के जीवन से प्रेरणा लेकर, हम बच्चों में धर्म और आदर्शों के महत्व को सिखा सकते हैं। इससे न केवल उनका नैतिक विकास होगा, बल्कि वे समाज के लिए भी उपयोगी नागरिक बनेंगे। धर्म के इन सिद्धांतों को अपनाकर, हम व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर सकारात्मक परि

अयोध्या के राजा दशरथ का जन्म कैसे हुआ था उनके माता-पिता कौन थे?

अयोध्या के राजा दशरथ का जन्म कैसे हुआ था उनके माता-पिता कौन थे? राजा दशरथ का जन्म अयोध्या के महान राजा अज और रानी इंदुमती के घर हुआ था। उनका मूल नाम नेमि था, लेकिन उन्हें दशरथ कहा जाता था क्योंकि उनकी रथ दस दिशाओं में जा सकती थी और आकाश में उड़ सकती थी। एक बार राजा अज अपनी पूजा कर रहे थे, तभी लंका के राजा रावण उनसे युद्ध करने आए। राजा अज ने अपनी पूजा भगवान शिव को समर्पित की और जल को आगे की बजाय पीछे की ओर फेंका। रावण ने इस पर आश्चर्य व्यक्त किया और पूछा कि ऐसा क्यों किया गया। राजा अज ने उत्तर दिया कि उन्होंने एक गाय को देखा जो कि एक शेर के हमले का शिकार होने वाली थी, इसलिए उन्होंने जल पीछे की ओर फेंका। रावण ने जब शेर को देखा तो उसमें कई तीर लगे हुए थे, जो कि राजा अज की शक्ति का प्रमाण थे। रावण ने यह समझ लिया कि ऐसे महान योद्धा को हराना असंभव है और बिना युद्ध किए ही लंका लौट गए। एक और अवसर पर, राजा अज एक सुंदर कमल का फूल प्राप्त करने के लिए एक तालाब में गए, लेकिन कमल उनसे दूर होता गया। तभी एक दिव्य वाणी ने कहा कि "हे राजा! तुम संतान विहीन हो और इस कमल को प्राप्त करने के योग्य नहीं

क्या मर्यादा की कम समझ होना इंसान के बर्बादी का कारण बन सकता है

क्या मर्यादा की कम समझ होना इंसान के बर्बादी का कारण बन सकता है? जी हां, मर्यादा की कम समझ व्यक्ति के जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। भारतीय दर्शन और धर्मग्रंथों में मर्यादा को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।  मर्यादा की कमी से व्यक्ति में अहंकार, अनुचित इच्छाएं और असंतोष की भावना बढ़ सकती है, जो अंततः उसके जीवन को नकारात्मक दिशा में ले जा सकती है। इसलिए, जीवन में संतुलन और मर्यादा का होना बहुत जरूरी है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन में, बल्कि समाज में भी सद्भाव और समृद्धि लाने में मदद करता है। मर्यादा को प्रमुख रूप से प्रस्तुत करने वाला दर्शनशास्त्र भारतीय दर्शन है, जिसमें विशेष रूप से रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में इसका गहरा वर्णन मिलता है। इन ग्रंथों में मर्यादा के महत्व को विभिन्न पात्रों के जीवन और कर्मों के माध्यम से दर्शाया गया है। आप सभी ने कभी ना कभी रामचरितमानस पड़ा, सुना होगा। उसमें एक प्रसंग है, सुपनखा सुपनखा ने अपने मर्यादा का पालन नहीं किया और राम, श्री राम के प्रति आसक्त हो गई। आगे की कहानी आप जानते ही हैं, जहां भी मर्यादा भंग होगी, वहां विनाश होना संभव है। सदैव

क्या है वह, जो मनुष्य को व्याकुल, परेशान और अशांत रखता है।

क्या है वह, जो मनुष्य को व्याकुल, परेशान और अशांत रखता है। जब इंसान ऐसी मानसिकता को अपने अंदर पोषण देता है, या उसे पोषित करता है, जो उस मनुष्य को व्याकुल, परेशान, अशांत कर देती है, तब वही पोषण उस मनुष्य के पतन का कारण बनता है। आपने कभी इस बात को समझने का प्रयास किया है, बाहरी वस्तु, भाव, चाहे जो भी कुछ हो उनका प्रभाव हम पर कुछ समय के लिए ही होता है, पर उनसे उत्पन्न होने वाले भाव जिसे आप इंट्रेस्ट भी कह सकते हैं, वह बहुत समय तक हमारे मस्तिष्क में हमारे अंदर जीवित रहता है। और अपना प्रभाव दिखाता रहता है, क्या कारण हो सकता है, कि हम उस भाव को, उस प्रकरण को, अपने मस्तिष्क से निकाल नहीं पाते, जो हमारे व्याकुलता, परेशानी और हमें अशांत रखने का कारण होता है। उन सभी भावनाओं और विकारों को समझाने का प्रयास करेंगे, जिससे कि आप अपने जीवन से व्याकुलता, परेशानी और अशांति से रक्षा कर पाए। अगर बचना चाहते हो ऐसी भावनाओं से, ऐसी शक्तिओ से, जो आपको व्याकुल, परेशान और अशांत करती हैं। तो पोषित करना छोड़ना होगा, उन सभी मानवीय विकारों को, मस्तिष्क के विकारों को जो हमारे अंदर पोषित हो रहे हैं। अगर हम अपने अंदर

क्या अंतर है साहस और शक्ति में?

क्या अंतर है साहस और शक्ति में? आध्यात्मिक तौर पर, साहस आंतरिक शक्ति है। जो किसी भी कार्य को करने के लिए हमें प्रेरित करती है। उस कार्य में कितनी भी कठिनाइयां आए, उस कार्य को करने की, उस कार्य को पूरा करने की मानसिक शक्ति प्रदान करती है। साहस और शक्ति दोनों ही महत्वपूर्ण गुण हैं, लेकिन इनमें अंतर है।  साहस का अर्थ है किसी भी प्रकार की चुनौती या खतरे का सामना करने की मानसिक या आत्मिक ताकत। यह अनिश्चितता, डर या कठिनाई के बावजूद सही काम करने की क्षमता है।  शक्ति आमतौर पर शारीरिक या मानसिक ताकत को दर्शाती है, जैसे किसी भारी वस्तु को उठाने की क्षमता या किसी कठिन समस्या को हल करने की बुद्धिमत्ता। संक्षेप में, साहस वह गुण है जो हमें डर का सामना करने और चुनौतियों के बावजूद आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, जबकि शक्ति वह क्षमता है जो हमें शारीरिक या मानसिक रूप से कठिन कार्यों को पूरा करने में सक्षम बनाती है।  आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, आंतरिक शक्ति वह ऊर्जा है जो हमें अंदर से प्रेरित करती है और हमें चुनौतियों का सामना करने और उन्हें पार करने की शक्ति देती है। यह शक्ति हमें न केवल सोचने की क्षमता देती

कैसा होता है वह प्रेम, वह प्रेम संबंध जो सुख, शांति और ना खत्म होने वाला साथ प्रदान करता है?

कैसा होता है वह प्रेम, वह प्रेम संबंध जो सुख, शांति और ना खत्म होने वाला साथ प्रदान करता है? मैं इस बात से इनकार नहीं करता की, प्रेम, प्राप्त करने की भावना है, हासिल करने की भावना है। जब प्रेम आपको भक्ति और समर्पण के रूप में प्राप्त होता है, तो वह ना खत्म होने वाले सुख, शांति और समृद्धि को प्राप्त कराता है। वही प्रेम केवल इच्छापूर्ति और विकारों से उत्पन्न हुआ हो तो, वह दुख अशांति और अत्यंत भयानक पीरा का कारण बनता है।  जब भी हम किसी के प्रति आकर्षित होते हैं, एक बात का ध्यान रखिएगा, प्रेम की शुरुआत आकर्षण यानी इंटरेस्ट से होती है। प्रेम कैसा प्रतिफल देगा, उसका स्वरूप कैसा होगा, उसका हमारे जीवन पर हमारे सुख, शांति और समृद्धि पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह सब कुछ निर्भर करता है, उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और विचारों पर। अगर व्यक्ति शांत स्वभाव का, सत्य निष्ठ, त्यागी, धर्मात्मा, योगी या देव तुल्य है तो उसका प्रेम त्याग, समर्पण, और सम्मान के रूप में होगा, इसके प्रतिफल के रूप में, इसके प्रभाव के रूप में हम सुख, शांति और ना खत्म होने वाले आनंद को प्राप्त होंगे। इस तरह का प्रेम उस इंसान को धरती पर रहत

आखिर क्यों अपमान या अपमानित होना बहुत अच्छा है?

आखिर क्यों अपमान या अपमानित होना बहुत अच्छा है? अपमान एक न्यूट्रल शक्ति है। इसका प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व के हिसाब से पड़ता है। अपमान एक ऐसी शक्ति है, जिसका उपयोग  आत्मसंयम, समझदारी और सही तरीके से किया जाए तो, वह उस व्यक्ति को इतिहास में दर्ज करा सकती है, इतिहास में अमर करा सकती है। अपमान का प्रभाव कितना होगा, कैसा होगा यह उस व्यक्ति के सहनशीलता, सहनशक्ति, आत्म नियंत्रण और समझदारी पर डिपेंड करता है। इसका प्रभाव इस पर भी डिपेंड करता है कि आखिर अपमान कर कौन रहा है। अपमान करना बुरा है, पर अपमान सहना अच्छा और बहुत अच्छा हो सकता है। फर्क इस से पड़ता है कि, आखिर अपमान, हो किस का रहा है? अपमान अगर सत्य पारायण, सत्यनिष्ठ, धर्म परायण और एक योगी का हो रहा है, तो इसके प्रतिफल के रूप में जो उत्पन्न होगा, उस से उस व्यक्ति, और उसके समाज को उन्नति, प्रगति और विकास की प्राप्ति होगी।  अपमान एक न्यूट्रल शक्ति है। इस शक्ति का प्रभाव कैसा होगा यह डिपेंड करता है की, जिसका अपमान हुआ उस व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा है, मतलब यह है कि वह व्यक्ति कैसे विचारों वाला है। अगर उस व्यक्ति का व्यक्तित्व योगी पुरुष,

आखिर क्यों कुछ लोग हमेशा प्रसन्नचित और शांत रहते हैं जबकि कुछ लोग हमेशा ही भ्रमित अशांत और व्याकुल रहते हैं।

आखिर क्यों कुछ लोग हमेशा प्रसन्नचित और शांत रहते हैं जबकि कुछ लोग हमेशा ही भ्रमित अशांत और व्याकुल रहते हैं। यह एक दिलचस्प प्रश्न है। व्यक्तियों की मानसिक स्थिति और उनकी प्रसन्नता का स्तर उनकी जीवनशैली, विचार प्रक्रिया, और व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करता है। शांत और प्रसन्न रहने वाले लोगों में कुछ सामान्य आदतें होती हैं. एक प्रसंगचित इंसान बनने के लिए हमारे सभी कांसेप्ट क्लियर होने चाहिए। साथ ही साथ हमें सत्य निष्ठ भी होना चाहिए। हमारे सारे कांसेप्ट क्लियर हो साथ ही साथ हम सत्य निष्ठ हो इसके लिए हमारे पास भावनाओं से भरा हुआ हृदय, और दृढ़ निश्चय से भरा हुआ मस्तिष्क होना चाहिए। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यह भी महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति अपने भावनाओं को स्वाधीनता से और सत्य निष्ठा के साथ नियंत्रित कर सके। एक भरपूर हृदय और दृढ़ निश्चय व्यक्ति को अपने आदर्शों की प्राप्ति में मदद करते हैं और उसे अपने जीवन को एक उदाहरण बनाने में सहायक होते हैं। इस प्रकार का जीवन जीने से व्यक्ति न केवल खुद के लिए बल्कि अपने समाज के लिए भी एक उदाहरण बना सकता है।  जब इंसान का कांसेप्ट क्लियर होता है और वह सत्य

मनुष्य के जीवन के चार स्तंभ जो उसे मनुष्य से देवतुल्य बनाए रखते हैं।

मनुष्य के जीवन के चार स्तंभ जो उसे मनुष्य से देवतुल्य बनाए रखते हैं। जो व्यक्ति जीवन के इन चार स्तंभों - वचन, पालन, स्वधर्म, और राज धर्म को मजबूती से थामे रखता है और इनके अनुसार अपने जीवन को आकार देता है, उसका जीवन निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है. समर्पित: ऐसा व्यक्ति अपने वचन के प्रति समर्पित होता है, जिससे उसके चरित्र में दृढ़ता और विश्वसनीयता झलकती है। जिम्मेदार: वह अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जिम्मेदारी के साथ जीवन जीता है। नैतिक: स्वधर्म का पालन करते हुए, वह नैतिकता और धार्मिकता के मार्ग पर चलता है। न्यायप्रिय: राज धर्म के अनुसार, वह समाज में न्याय और समानता को महत्व देता है। त्यागी: त्याग के माध्यम से, वह अपनी स्वार्थी इच्छाओं को छोड़कर उच्च आदर्शों की ओर अग्रसर होता है। इस प्रकार का जीवन अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक हो सकता है। ऐसे व्यक्तित्व वाले इंसान सम्मान और आदर के पात्र होते हैं। भारतीय दर्शन और संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये चार स्तंभ हैं: पहले स्तंभ, वचन पालन: अपने वचन का पालन

पौराणिक वेद और शास्त्रों में उल्लेखित सात फेरों के दौरान लिए जाने वाले सात वचन।

पौराणिक वेद और शास्त्रों में उल्लेखित सात फेरों के दौरान लिए जाने वाले सात वचन।  हिंदू विवाह संस्कार में सात फेरों के दौरान लिए जाने वाले सात वचनों का अर्थ और उनके पीछे के रहस्य इस प्रकार हैं: प्रथम वचन: इस वचन में वर और वधु एक-दूसरे को धर्मिक और आध्यात्मिक रूप से सहयोग करने का वादा करते हैं। वे एक-दूसरे के साथ धर्म कर्म में भाग लेने का संकल्प लेते हैं. द्वितीय वचन: इस वचन में वर वधु को वादा करता है कि वह उसके माता-पिता का सम्मान करेगा और वधु भी वर के माता-पिता का सम्मान करने का वचन देती है. तृतीय वचन: इस वचन में वर और वधु एक-दूसरे को धन-संपत्ति के सही प्रबंधन और बढ़ावे का वचन देते हैं. चतुर्थ वचन: इस वचन में वर और वधु एक-दूसरे को सुख-दुख में साथ निभाने का वचन देते हैं. पंचम वचन: इस वचन में वर और वधु एक-दूसरे को संतानों के उचित पालन-पोषण और शिक्षा का वचन देते हैं. षष्ठम वचन: इस वचन में वर और वधु एक-दूसरे को स्वास्थ्य और बीमारी में साथ देने का वचन देते हैं. सप्तम वचन: इस वचन में वर और वधु एक-दूसरे को जीवनभर के लिए साथी बनने का वचन देते हैं और एक-दूसरे के प्रति वफादार रहने का वादा करते ह

जीवन को सुख और शांति से जीने की कला सीखें।

जीवन को सुख और शांति से जीने की कला सीखें। हर कोई जी रहा है। और अधिक जीना चाहता है। पर क्या कोई समझ रहा है, जीवन जीना भी एक कला है। और जिसने भी जीवन को कैसे जिया जाए, इसकी कला सीख ली वह जीवन के हर क्षेत्र में कामयाबी की बुलंदियों को छुता जा रहा है। जीवन जीना एक कला है,  इस कला का ज्ञान, मैं आपको अपने बनाए कुछ सूत्रों के आधार पर दूंगा। जिससे आप अपने जीवन को सुख शांति समृद्धि के साथ जी पाएंगे।  हमेशा इस बात का ध्यान रखें, की हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए, कि जब भी सुबह उठे पूजा करने के लिए अपने ईश्वर, अपने भगवान, अपने आराध्य के सामने जाएं तो हमारे मन को, आत्मा को, दिमाग को यह विश्वास हो कि हमारे कर्म एसे है, इस लायक है, कि हम अपने ईश्वर अपने भगवान के सम्मुख बैठकर उनकी प्रार्थना और पूजा कर सकते हैं। हमारा मन आत्मगिलानी से व्याकुल न होकर, संतोष के भाव से भरपूर होना चाहिए। जीवन में चाहे कोई भी कार्य, कोई भी प्रकरण क्यों ना हो, उस कार्य, उस प्रकरण को हमें अपने मान सम्मान से नहीं जोड़ना है। उस कार्य को, उस प्रकरण को एक कार्य की तरह, एक प्रकरण की तरह ही देखना, समझना और करना है क्योंकि अक्सर देखा

त्याग और दान में ऐसा क्या अंतर है जिससे एक का प्रयोग बहुत अच्छे कार्यों के लिए किया जाता है जबकि दूसरे का प्रयोग बहुत बुरे कार्यों के लिए किया जाता है?

त्याग और दान में ऐसा क्या अंतर है जिससे एक का प्रयोग बहुत अच्छे कार्यों के लिए किया जाता है जबकि दूसरे का प्रयोग बहुत बुरे कार्यों के लिए किया जाता है? त्याग और दान मानवीय आत्म शक्ति है। त्याग की शक्ति का प्रयोग हम वहां करते हैं जहां तमाम प्रकार की बुराइयां हो। क्योंकि त्याग हमें तभी अच्छे परिणाम देगा जब हम उनका प्रयोग बुरे और बुराई को त्यागने में करेंगे। त्याग हमें तभी उन्नति प्रगति और विकास के चरण सीमा पर ले जाएगा जब हम इसका प्रयोग बुरे और बुराई को त्यागने में करेंगे। आप सभी मेरी बातों से सहमत होंगे। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, त्याग और दान वास्तव में मानवीय आत्म शक्ति के दो पहलू हैं। त्याग में बुराइयों को छोड़ने की शक्ति होती है, जो व्यक्ति को आंतरिक शांति और सद्गुणों की ओर ले जाती है। वहीं, दान में दूसरों की मदद करने की शक्ति होती है, जो समाज में सहयोग और सद्भावना को बढ़ाती है। दोनों ही गुण व्यक्ति को उन्नति, प्रगति और विकास की ओर ले जाते हैं।  फिर इस बात को कैसे समझे की त्याग और दान दोनों अलग-अलग है? क्योंकि दोनों में ही छोड़ने का भाव है। यह सवाल बहुत ही गहरा और विचारशील है। त्याग और

क्या अंतर है श्राप, वरदान, दुआ और बद्दुआ में?

क्या अंतर है श्राप, वरदान, दुआ और बद्दुआ में?  श्राप और वरदान ईश्वर द्वारा ऋषि मुनियों को, देवतुल्य इंसानों को दी हुई एक शक्ति है। जिसके द्वारा वह समाज और प्रकृति के नियमों को बैलेंस करते हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, श्राप और वरदान को अक्सर ईश्वरीय शक्ति या ऋषि-मुनियों की दिव्य शक्तियों के रूप में देखा जाता है, जिनका प्रयोग समाज और प्रकृति के संतुलन के लिए किया जाता है। यह मान्यता है कि इन शक्तियों का प्रयोग बहुत सोच-समझकर और जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए, क्योंकि इनके परिणाम समाज पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। श्राप देने वरदान देने की काबिलियत अगर चाहिए तो खुद को देव तुल्य बनाना होगा यानी हमें जीतना होगा खुद को अपने काम (लोभ), क्रोध, मद (अभिमान), मोह, मत्सर (ईर्ष्या), लोभ (पिगलीपन), अहंकार जिस दिन हमने अपने इन सात शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ले उसे दिन हमें हासिल हो जाएगी। वरदान देने की क्षमता श्राप देने की क्षमता। आपने जिन सात शत्रुओं का उल्लेख किया है, वे भारतीय दर्शन में अरिषड्वर्ग के रूप में जाने जाते हैं, जो मनुष्य के आंतरिक दुश्मन होते हैं। इन्हें पराजित करना ही आत्मिक उन्नति