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कैसा होता है वह प्रेम, वह प्रेम संबंध जो सुख, शांति और ना खत्म होने वाला साथ प्रदान करता है?
मैं इस बात से इनकार नहीं करता की, प्रेम, प्राप्त करने की भावना है, हासिल करने की भावना है। जब प्रेम आपको भक्ति और समर्पण के रूप में प्राप्त होता है, तो वह ना खत्म होने वाले सुख, शांति और समृद्धि को प्राप्त कराता है। वही प्रेम केवल इच्छापूर्ति और विकारों से उत्पन्न हुआ हो तो, वह दुख अशांति और अत्यंत भयानक पीरा का कारण बनता है।
जब भी हम किसी के प्रति आकर्षित होते हैं, एक बात का ध्यान रखिएगा, प्रेम की शुरुआत आकर्षण यानी इंटरेस्ट से होती है। प्रेम कैसा प्रतिफल देगा, उसका स्वरूप कैसा होगा, उसका हमारे जीवन पर हमारे सुख, शांति और समृद्धि पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह सब कुछ निर्भर करता है, उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और विचारों पर। अगर व्यक्ति शांत स्वभाव का, सत्य निष्ठ, त्यागी, धर्मात्मा, योगी या देव तुल्य है तो उसका प्रेम त्याग, समर्पण, और सम्मान के रूप में होगा, इसके प्रतिफल के रूप में, इसके प्रभाव के रूप में हम सुख, शांति और ना खत्म होने वाले आनंद को प्राप्त होंगे। इस तरह का प्रेम उस इंसान को धरती पर रहते हुए अलौकिक आनंद की प्राप्ति कराता है। जीवन में जब भी प्रेम हो इस बात को सदा ही सुनिश्चित करें की, प्रेम जो हम मे उत्पन्न हुआ है, या हमारे साथी में उत्पन्न हुआ है। उसके उत्पन्न होने का कारण समर्पण, त्याग और सम्मान ही होना चाहिए। प्रेम में इन तीनों का होना अनिवार्य है। अगर कोई एक भी कम है, या नहीं है, तो वह प्रेम अस्थिर होगा, और उसका भविष्य अनिश्चित होगा।
प्रेम जब समर्पण, त्याग, सम्मान की भावना से किया जाता है, तो वह सुख, शांति और ना खत्म होने वाली खुशियां प्रदान करता है। प्रेम जब कुछ प्राप्त करने की भावना से नहीं, कुछ देने या समर्पण की भावना से किया जाता है। तो वह सुख का कारण बनता है। प्रेम जब आधिपत्य प्राप्त करने की भावना से नहीं, बल्कि आधिपत्य देने की भावना से किया जाता है, तो वह सुख का कारण बनता है। प्रेम जब व्यक्ति के देह से नहीं, उस देह में स्थापित गुनो और संस्कारों से किया जाता है, तब वह प्रेम सुख और शांति प्रदान कराता है।
अगर प्रेम की व्याख्या करना चाहे तो, हम यह कह सकते हैं, प्रेम एक ऐसी भावना है, एक ऐसी शक्ति है, जिसका कोई स्वरूप नहीं होता। पर यह जिस व्यक्ति को होता है, या जो व्यक्ति करता है, वह व्यक्ति कैसे स्वभाव वाला है, कैसे व्यक्तित्व का स्वामी है, अगर वह अच्छे स्वभाव वाला है, एक उच्च व्यक्तित्व, सात्विक व्यक्तित्व का स्वामी है, तो ऐसे व्यक्ति में उत्पन्न हुआ प्रेम अत्यंत लाभकारी होगा।
वहीं दूसरी ओर, अगर व्यक्ति का व्यक्तित्व और चरित्र ही खराब हो, और ऐसे व्यक्ति में प्रेम उत्पन्न हो, या कोई और इससे प्रेम करें, तो वह प्रेम, दुख, अशांति और अत्यंत भयंकर मानसिक पीड़ा देने वाला होगा। और यह केवल उस व्यक्ति के लिए नहीं यह दोनों पक्षों पर लागू होता है।
वहीं दूसरी ओर, अगर व्यक्ति का स्वभाव, व्यक्तित्व अगर लालची, दुष्ट प्रवृत्ति और अधर्मी हो तो, उसका प्रेम केवल शरीर और शरीर से जुड़ी बाहरी वस्तुओं से होगा। इस तरह का प्रेम या इस तरह के व्यक्ति के साथ होने वाला प्रेम विनाश का कारण होता है। दुख, अशांति और अत्यंत ही भयानक पीरा को देने वाला होता है। क्योंकि इस प्रेम में उससे प्रेम किया जाता है, जो परिवर्तनशील है। जिसका परिवर्तन होना, खत्म होना निश्चित है। जब प्रेम ऐसी वस्तु से होगा, जो परिवर्तित हो जाएगा या खत्म हो जाएगा, तो प्रेम का स्वरूप कैसे स्थिर रह सकता है। ऐसा प्रेम जो परिवर्तनशील है, और जिसमें स्थिरता भी नहीं है, उससे प्रेम करना यानी खुद से ही दुख, अशांति और अत्यंत भयानक पीड़ा को आवाहन करने जैसा है।
प्रेम एक अत्यंत थी निर्मल और सात्विक भाव है। यह एक बहुत ही पवित्र शक्ति या भाव है। प्रेम शुद्ध रूप से मासूम होता है। इसको बहुत ही अधिक देखभाल और समझदारी की आवश्यकता होती है। पर यह इतना शक्तिशाली होता है, कि इसका इस्तेमाल बहुत ही समझदारी से करना चाहिए। क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है, कि आपके जीवन को बना भी सकती है, और बिगाड़ भी सकता है।
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