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हां, डर लगता है मुझे,
उन झुर्रियों वाले हाथों को देखकर,
जो आशा की भीख मांगते हैं।
हां, डर लगता है मुझे,
उन निर्दोष आंखों को देखकर,
जो सहारे की तलाश में हैं।
हां, डर लगता है मुझे,
मेरी माँ के सपनों को अधूरा छोड़ देने से।
हां, डर लगता है मुझे,
उन छोटे हाथों को थामे,
सही मार्ग न दिखा पाने से।
हां, डरता हूँ मैं,
झूठ के बोझ तले दबने से,
और अनैतिकता के रास्ते पर चलने से।
हां, डरता हूँ मैं,
मेरे पिता की आशाओं पर खरा न उतर पाने से।
हां, डरता हूँ मैं,
जीवन को यूँ ही व्यर्थ गवां देने से।
हां, डरता हूँ मैं,
किसी के काम न आ पाने से।
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