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मनुष्य के जीवन के चार स्तंभ जो उसे मनुष्य से देवतुल्य बनाए रखते हैं।
जो व्यक्ति जीवन के इन चार स्तंभों - वचन, पालन, स्वधर्म, और राज धर्म को मजबूती से थामे रखता है और इनके अनुसार अपने जीवन को आकार देता है, उसका जीवन निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है.
समर्पित: ऐसा व्यक्ति अपने वचन के प्रति समर्पित होता है, जिससे उसके चरित्र में दृढ़ता और विश्वसनीयता झलकती है।
जिम्मेदार: वह अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जिम्मेदारी के साथ जीवन जीता है।
नैतिक: स्वधर्म का पालन करते हुए, वह नैतिकता और धार्मिकता के मार्ग पर चलता है।
न्यायप्रिय: राज धर्म के अनुसार, वह समाज में न्याय और समानता को महत्व देता है।
त्यागी: त्याग के माध्यम से, वह अपनी स्वार्थी इच्छाओं को छोड़कर उच्च आदर्शों की ओर अग्रसर होता है।
इस प्रकार का जीवन अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक हो सकता है। ऐसे व्यक्तित्व वाले इंसान सम्मान और आदर के पात्र होते हैं।
भारतीय दर्शन और संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये चार स्तंभ हैं:
पहले स्तंभ, वचन पालन: अपने वचन का पालन करना, जो विश्वास और ईमानदारी का प्रतीक है। अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करना।
दूसरा स्तंभ, स्वधर्म: अपने धर्म और नैतिकता के अनुसार जीवन जीना।
तीसरा स्तंभ, राज धर्म: एक शासक के रूप में अपने राज्य और प्रजा के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वहन।
चौथा स्तंभ, त्याग: स्वार्थी इच्छाओं का त्याग करना और उच्च आदर्शों के लिए काम करना।
ये स्तंभ न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज में भी संतुलन और सद्भावना बनाए रखने में मदद करते हैं।
जीवन में इन चार स्तंभों का इतना महत्व है, कि एक भी स्तंभ अगर गिरा तो इंसान अपने जीवन के नीति न्याय और धर्म के रास्ते से भटक जाएगा। इन चारों स्तंभों के कारण जीवन में चरित्र और संस्कार का उदय होता है। अतः यह हमारा नैतिक धर्म बनता है कि हम इन चारों स्तंभोंको मजबूती से थामे रखें अपने जीवन में।
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