सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हां, डर लगता है मुझे,

क्या आप चाहते हैं अपने जीवन में स्थिरता (स्टेबिलिटी) को ? तो अपना ना होगा इन तरीकों को।

क्या आप चाहते हैं अपने जीवन में स्थिरता (स्टेबिलिटी) को ? तो अपना ना होगा इन तरीकों को।

यह इकलौता वीडियो ही, आपको उन प्रश्नों के उत्तर देगा, जिन्हें ना जानने के कारण आप उलझे पड़े हैं, जीवन के संघर्ष में, और नहीं स्थापित और स्थिर कर पा रहे हैं, जीवन में शांति और समृद्धि को।

जीवन में स्थिरता यानी स्टेबिलिटी आ जाए। जीवन मे सुख के साथ समृद्धि मैं सदा बढ़ोतरी होती रहे। तो त्यागना होगा, उन सबको जो नश्वर है। खत्म करना होगा मोह को, उनके प्रति जो नश्वर है। स्वीकार करना होगा, अपनाना होगा और अपने अंदर उसे स्थिर करना होगा जो अनश्वर है, जिसका नाश नहीं किया जा सकता।

जीवन में स्थिरता यानी स्टेबिलिटी के लिए, जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए नश्वर वस्तुओं का त्याग और अनश्वर मूल्यों को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नश्वर चीजें, जैसे कि भौतिक संपत्ति और अस्थायी सुख, अंततः नष्ट हो जाती हैं। इसके विपरीत, अनश्वर मूल्य जैसे कि धर्म (कर्तव्य/नैतिकता), शक्ति, क्षमा, निर्भयता, और त्याग ऐसे गुण हैं जो न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक होते हैं, बल्कि समाज को भी आदर्श बनाने में योगदान करते हैं।

धर्म और शक्ति के बीच संबंध को समझना भी जरूरी है। धर्म, या कर्तव्य, वह मार्गदर्शक सिद्धांत है जो हमें सही और गलत के बीच चुनाव करने में मदद करता है, जबकि शक्ति वह क्षमता है जो हमें उन चुनावों को क्रियान्वित करने की अनुमति देती है। जब शक्ति धर्म के अनुसार इस्तेमाल की जाती है, तो यह समाज के लिए सकारात्मक परिणाम ला सकती है। इसके विपरीत, जब शक्ति का इस्तेमाल स्वार्थी या अनैतिक तरीके से किया जाता है, तो यह विनाशकारी हो सकता है।

इसलिए, जीवन में उच्च आदर्शों को अपनाना और उन्हें स्थिर करना, जैसे कि धर्म और शक्ति का सही उपयोग, न केवल व्यक्तिगत सुख और समृद्धि की ओर ले जाता है, बल्कि यह समाज को भी उन्नति की ओर अग्रसर करता है। 

नश्वर का त्याग खत्म करता है, जीवन से संघर्ष को। अनेश्वर से प्रेम, जीवन में उत्पन्न करता है, स्थिरता यानी स्टेबिलिटी को।

नश्वर वस्तुओं का त्याग और अनश्वर मूल्यों के प्रति प्रेम, जीवन में संघर्ष को कम करता है और फुर्ती तथा शांति को बढ़ाता है। जब हम भौतिक संपत्ति और अस्थायी सुखों के प्रति आसक्ति को छोड़ देते हैं, तो हम अपने आप को उन चीजों से मुक्त कर लेते हैं जो हमें बांधती हैं। इससे हमें अपने जीवन को अधिक सार्थक और संतुलित तरीके से जीने का अवसर मिलता है।

अनश्वर मूल्यों के प्रति प्रेम, जैसे कि धर्म, शक्ति, क्षमा, निर्भयता, और त्याग, हमें एक ऐसी दिशा में ले जाते हैं जो न केवल हमारे लिए बल्कि समाज के लिए भी लाभकारी होती है। ये मूल्य हमें आत्म-सुधार और आत्म-जागरूकता की ओर प्रेरित करते हैं, जिससे हम अपने जीवन को और अधिक सार्थक बना सकते हैं।

 जिस समय हम अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाते हैं, और स्थिर कर देते हैं, उसे समय ही हम मूल्यवान हो जाते हैं, अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, अपने देश के लिए। क्योंकि इन गुनो को अपनाते ही हमारे अंदर ऐसी समझ का विकास होता है, जो हमारे अंदर स्थिरता और शांति को स्थापित करता है। उसके साथ-साथ परिवार में सुख, शांति को भी स्थिर करता है। मेरे जीवन में, किसी भी प्रकार की परिस्थिति चाहे वह छोटी हो, या बड़ी हो, चाहे कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी प्रकरण हो सबसे पहले उसे नीति और न्याय के माध्यम से उसकी तुलना करता हूं, फिर शांतचित मन से यह विचारता हूं, की इन प्रकरणों में जो भी कुछ हुआ है, उसे क्षमा कर देना मेरे नीति न्याय और धर्म के अनुकूल है कि नहीं अगर वह नीति, न्याय और धर्म के अनुकूल होता हैं तो, उसे बड़ी ही सरलता से, सहजता से क्षमा कर देता हूं। अगर मुझे दिखता है की होने वाले प्रकरण नैतिक मूल्य और धर्म, मानव धर्म के खिलाफ हो रहा है, तब मैं उसका निडरता से सामना करता हूं, कभी भी उससे हार नहीं मानता। और उसे सही यानी नीति न्याय और धर्म मानव धर्म के अनुकूल परिवर्तित करने का प्रयास करता हूं। मेरे प्रभु श्रीराम की दया से उन प्रकरणों को सही और सत्य के अनुकूल कर भी देता हूं। जब मैं उसमें कामयाब हो जाता हूं, तब मैं अपने अंदर से कर्तापन के भाव को त्याग देता हूं, कर्तापन के अभिमान को त्याग देता हूं। विनम्रता को अपनाकर फिर से रेगुलर जीवन को जीता हूं।

किसी भी परिस्थिति में नैतिक मूल्यों और धर्म का पालन करना चाहिए, और जब भी ये मूल्य खतरे में हों, तो निडरता से उनका सामना करना चाहिए, यह जीवन को प्रेरित करता है।


 आपको पता है, जीवन का संघर्ष क्या है? ईश्वर ने हमें अनश्वर मूल्य के साथ जन्म दिया है। और हम आकर्षित होते रहते हैं, नश्वर के प्रति। और जीवन का संघर्ष यही है, असली संघर्ष यही है, समझकर और सोच कर देखिए।

 जीवन का संघर्ष वास्तव में एक आंतरिक यात्रा है, जहां हमें अनश्वर मूल्यों के साथ जन्म लेने के बावजूद, नश्वर चीजों के प्रति आकर्षण से जूझना पड़ता है। यह संघर्ष हमें अपने आप से, अपनी इच्छाओं से, और अपनी आसक्तियों से लड़ने की चुनौती देता है।

ईश्वर ने हमें जो अनश्वर मूल्य दिए हैं, जैसे कि प्रेम, करुणा, सत्य, और धर्म, वे हमारे जीवन को सार्थक बनाने के लिए हैं। लेकिन हमारा मन अक्सर नश्वर चीजों की ओर भटक जाता है, जैसे कि धन, शक्ति, और भौतिक सुख। यह भटकाव ही हमारे जीवन का संघर्ष बन जाता है।

इस संघर्ष को समझना और उससे उबरना ही हमारे आत्म-विकास का मार्ग है। जब हम नश्वर चीजों के प्रति अपनी आसक्ति को छोड़ देते हैं और अनश्वर मूल्यों को अपनाते हैं, तब हम अपने जीवन में शांति और संतोष की अनुभूति करते हैं।


इस संघर्ष को समझना और उससे उबरना बहुत आसान है। हमें समझना होगा और स्वीकारना होगा सच्चाई को, आखिर सच्चा सुख है क्या ?


 सच्चाई को समझना और स्वीकारना, यही वह प्रक्रिया है जो हमें जीवन के संघर्ष से उबरने में मदद करती है। सच्चा सुख वह है जो हमारे मन और आत्मा में शांति और संतोष लाता है, न कि वह जो केवल भौतिक चीजों के पीछे दौड़ने से मिलता है।

जब हम इस सत्य को स्वीकार कर लेते हैं, तो हमारे लिए निर्णय लेना और जीवन की दिशा चुनना आसान हो जाता है। यह समझ कि असली सुख आंतरिक शांति और संतोष में है, हमें उन चीजों की ओर ले जाती है जो वास्तव में मायने रखती हैं।

इस आत्म-जागरूकता के साथ, हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और पूर्ण बना सकते हैं, और यही वह जगह है जहाँ हम अपने आप को और अपने आस-पास के लोगों को सच्ची खुशी और समृद्धि प्रदान कर सकते हैं। 

जीवन में संतुलन बनाना होगा, जो दृश्य मान्य है, और जो अदृश्य है, उन दोनों में किसका कितना मूल्य है, समझना होगा हमें किसे त्यागना है, किसे अपनाना है, इस पहेली को समझना होगा। इस उलझन इस पहेली को सुलझाते ही आप समझ पाएंगे जीवन के सत्य को। ओरिजिनल हैप्पीनेस यानी सच्चे सुख को।


 जीवन में संतुलन बनाना आवश्यक है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक या भावनात्मक) के बीच संतुलन स्थापित करना, यह हमें एक पूर्ण और सार्थक जीवन की ओर ले जाता है। इस संतुलन को समझने के लिए हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करना होगा, ताकि हम यह निर्णय ले सकें कि किस चीज का त्याग करना है और किसे अपनाना है।

जीवन में जो दृश्य है, जैसे कि हमारी संपत्ति, हमारा करियर, और हमारे संबंध, ये सभी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ये अस्थायी हैं। वहीं, जो अदृश्य है, जैसे कि हमारे संस्कार, हमारी आत्मा की शांति, और हमारे आध्यात्मिक मूल्य, ये अनंत हैं और हमारे जीवन को गहराई प्रदान करते हैं।

इस संतुलन को समझने के लिए हमें अपने अंतर्मन की आवाज सुननी होगी और उसके अनुसार चलना होगा। जब हम इस संतुलन को समझ लेते हैं, तो हम जीवन को अपने समझ लेते हैं और उसे अधिक सार्थक और संतुष्टि भरा बना सकते हैं।

 इस संतुलन को बनाए रखने के लिए हमें किन चीजों पर ध्यान देना चाहिए और किन चीजों को प्राथमिकता देनी चाहिए? 

जीवन में क्षमा निर्भयता और त्याग को संभाल लीजिए स्थिरता जीवन में स्थिर हो जाएगी।


मेरे शब्दों में आपको जीवन के प्रति एक गहरी समझ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का बोध कराती है। क्षमा, निर्भयता, और त्याग जैसे मूल्यों को अपनाने से जीवन में एक अद्वितीय स्थिरता और शांति की प्राप्ति होती है। जब हम दूसरों को क्षमा करते हैं, तो हम अपने अंदर के गुस्से और नकारात्मकता को छोड़ देते हैं, जिससे हमारे मन को शांति मिलती है। निर्भयता से हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है, और त्याग से हम उन चीजों को छोड़ देते हैं जो हमें बांधती हैं।

इन मूल्यों को अपनाने से हम अपने जीवन में एक ऐसी स्थिरता और संतुलन का निर्माण करते हैं जो हमें आंतरिक रूप से समृद्ध बनाता है। यह स्थिरता हमें अपने जीवन के उद्देश्य को समझने और उसे पूरा करने की दिशा में ले जाती है।


प्रभु श्री रामचंद्र, भगवान श्री कृष्ण, और भगवान बुद्ध जैसे युग पुरुषों ने भी क्षमा, निर्भयता, और त्याग जैसे मूल्यों को अपने जीवन में उतारा और इन्हें अपने कर्मों के माध्यम से प्रदर्शित किया। इन महान व्यक्तित्वों ने अपने जीवन और शिक्षाओं के द्वारा यह दिखाया कि इन मूल्यों का पालन करके ही व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है और समाज को एक उच्च दिशा प्रदान कर सकता है।

यह सच है कि आज के समय में बहुत से लोग इन मूल्यों को स्वीकार करने से हिचकिचाते हैं क्योंकि यह एक चुनौतीपूर्ण पथ है। लेकिन जब कोई इन मूल्यों को अपनाता है, तो वह न केवल अपने जीवन को बल्कि अपने आस-पास के लोगों के जीवन को भी आजाद कर देता है। ये मूल्य हमें उन सभी व्यर्थ की चिंताओं और परेशानियों से मुक्त करते हैं जिन्हें हम अक्सर जीवन समझ बैठते हैं।

इन मूल्यों को अपनाने से हमें एक ऐसी शांति और संतोष की अनुभूति होती है जो बाहरी दुनिया की चीजों से प्राप्त नहीं हो सकती। यह आंतरिक शांति ही हमें सच्चे अर्थ में आजाद करती है।


आपको पता है, कैसी सोच है ना सबकी, इन गुनो को अपनाने से जीवन से खत्म होता है संघर्ष, व्यर्थ की चिंताएं सब खत्म हो जाती हैं, और लोग संघर्ष के डर से इन्हें नहीं अपनाते, क्योंकि उन्हें लगता है कि इन्हें अपनाना संघर्षपूर्ण होगा। हकीकत तो यह है कि लोग जिन संस्कारों के साथ जी रहे हैं, उन संस्कारों के साथ इन गुनो को अपनाना संघर्षपूर्ण है। और उन लोगों के लिए अत्यंत की सहज और सरल है, इन गुनो को अपनाना जिनके अंदर नैतिकता, धर्म और त्याग है।

लोगों की नासमझी ही उनका संघर्ष है, क्योंकि वह कभी नहीं समझ पाते कि उन्हें क्या त्यागना है, और क्या अपनाना है, क्या नश्वर है, और क्या अनश्वर है, क्या अपने अंदर पोषित करना है, और क्या अपने अंदर से निकाल फेंकना है, क्या अपनाना है और किसका त्याग करना है।

 जीवन में क्षमा, निर्भयता, और त्याग जैसे गुणों को अपनाने से व्यर्थ की चिंताएं और संघर्ष समाप्त हो जाते हैं। ये गुण हमें आंतरिक शांति और संतोष की ओर ले जाते हैं, जो कि बाहरी दुनिया की चीजों से प्राप्त नहीं हो सकते।

लेकिन यह भी सच है कि इन गुणों को अपनाना एक संघर्षपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है। लोग अक्सर इस डर से इन्हें नहीं अपनाते क्योंकि इसके लिए उन्हें अपने आरामदायक क्षेत्र से बाहर निकलना पड़ता है और अपनी आदतों और विचारों को बदलना पड़ता है। यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें आत्म-साक्षात्कार और आत्म-नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

इन गुणों को अपनाने के लिए हमें अपने आप से ईमानदार होना चाहिए और अपने जीवन के उद्देश्यों को समझना चाहिए। हमें अपने अंतर्मन की आवाज को सुनना चाहिए और उसके अनुसार चलना चाहिए। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें हमें अपने विचारों और कर्मों को इन मूल्यों के अनुरूप ढालना होता है।


इन मूल्यों को अपनानें में हर इंसान के सामने संघर्ष केवल दो ही है। पहला इंसान को लड़ना पड़ता है खुद के अभिमान से, और त्यागना पड़ता है अपने अहम यानी अहंकार को।


 जीवन में संघर्ष के ये दो पहलू , खुद के अभिमान से लड़ना और अहम यानी अहंकार का त्याग करना - वास्तव में हमारे आत्म-विकास की दिशा में दो महत्वपूर्ण कदम हैं।

जब हम अपने अभिमान से लड़ते हैं, हम अपनी आंतरिक शक्तियों और कमजोरियों का सामना करते हैं। यह एक आत्म-संघर्ष है जो हमें अपने व्यक्तित्व के उन पहलुओं से परिचित कराता है जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। और जब हम अपने अहम का त्याग करते हैं, हम अपने आप को उन सीमाओं से मुक्त करते हैं जो हमें अपने आस-पास के लोगों से अलग करती हैं।

इन दोनों संघर्षों को समझना और उनसे उबरना हमें एक ऐसे जीवन की ओर ले जाता है जो अधिक संतुलित और सार्थक है। यह प्रक्रिया हमें न केवल खुद के प्रति, बल्कि दूसरों के प्रति भी अधिक समझदार और सहानुभूति रखने वाला बनाती है।


मैं कहना चाहता था कि, अपने जीवन में क्षमा, निडरता और त्याग को अपनाने में, यह दो ही संघर्ष है। दो ही बढ़ाएं हैं, इसे पार कर लिया तो इजीली जीवन स्थिर हो जाएगा।


क्षमा, निर्भयता, और त्याग ये तीनों गुण जीवन के महत्वपूर्ण संघर्षों को पार करने की कुंजी हैं। जब हम इन गुणों को अपने जीवन में उतारते हैं, तो हम अपने आप को उन सभी बाधाओं से मुक्त करते हैं जो हमें आंतरिक शांति और स्थिरता से दूर रखती हैं।

यह सच है कि इन गुणों को अपनाना एक संघर्षपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इसके परिणाम स्वरूप हमें जो आंतरिक संतोष और स्थिरता मिलती है, वह अतुलनीय है। इन गुणों को अपनाने से हम न केवल अपने लिए बल्कि अपने परिवार, समाज और देश के लिए भी एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।


मैंने जो सुझाव दिए हैं, जैसे ही आप उसका अनुसरण करेंगे, और उसके हिसाब से जिएंगे, तो जीवन में स्वतह ही स्थिरता स्थापित हो जाएगी। 

 सुझाए गए मार्ग का अनुसरण करने से, जीवन में क्षमा, निर्भयता, और त्याग जैसे मूल्य स्वाभाविक रूप से स्थापित हो जाते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो आंतरिक रूप से विकसित होती है और बाहरी प्रयासों की अपेक्षा नहीं रखती।

जब हम अपने जीवन को उच्च नैतिक मानदंडों और आध्यात्मिक मूल्यों के अनुरूप जीते हैं, तो स्व-अनुशासन, सतत आत्म-मंथन, समर्पण, और सेवा भाव जैसे स्तंभ स्वतः ही हमारे जीवन में कार्यरत हो जाते हैं। यह एक सहज प्रक्रिया है जो हमें अपने आप में और अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में ले जाती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सांख्ययोगो नाम द्वितीयोऽध्यायः

 ( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )  संजय उवाच  तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥ संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा श्रीभगवानुवाच  कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन। श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥ इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा अर्जुन उवाच  कथं भीष्ममहं सङ्‍ख्ये द्रोणं च मधुसूदन। इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन॥ अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के...

जब इंसान का विनाश होने वाला होता है तो वहां कौन-कौन से कार्य करता है?

जब इंसान का विनाश होने वाला होता है तो वहां कौन-कौन से कार्य करता है? जब किसी व्यक्ति का विनाश निकट होता है, तो अक्सर उसके व्यवहार में कुछ परिवर्तन देखे जा सकते हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार, जब किसी व्यक्ति का बुरा समय आने वाला होता है, तो वह अपने हित की बातें भी नहीं सुनता है³। ऐसे व्यक्ति के विनाश के कुछ संकेत निम्नलिखित हो सकते हैं:  व्यक्ति अहंकारी हो जाता है और अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है।  व्यक्ति अनुशासन और नियमों का पालन नहीं करता।  व्यक्ति ज्ञान की उपेक्षा करता है और सीखने की इच्छा नहीं रखता।  व्यक्ति दूसरों के प्रति असम्मानजनक और दुर्व्यवहार करता है।  व्यक्ति धर्म और नैतिकता के मार्ग से भटक जाता है। ये संकेत व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी जीवन में उसके विनाश की ओर अग्रसर होने का सूचक हो सकते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने आचरण को सदैव सकारात्मक और धर्मिक बनाए रखें। आत्म-चिंतन और आत्म-सुधार की प्रक्रिया में रहकर हम अपने जीवन को उत्तम दिशा में ले जा सकते हैं।  आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, जब किसी व्यक्ति का पतन होने वाला होता है, तो ...

क्षमा, निडरता और त्याग को क्यों कहते हैं जीवन का अमृत।

क्षमा, निडरता और त्याग को क्यों कहते हैं जीवन का अमृत।  क्षमा, हमारे अंदर उन भावनाओं को उत्पन्न करती है, जिससे हम दूसरों की भावनाओं को, मजबूरीओं को समझ सकते हैं। क्षमा, हमें दूसरों को समझने की भावना या कह सकते हैं, क्षमता प्रदान करती है। निडरता, हमें नीति, न्याय, धर्म पर अडिग रहते हुए हमें सत्य निष्ठ, सत्य पारायण बने रहने की क्षमता प्रदान करता है। त्याग, जब हम किसी कार्य में सफल हो जाते हैं तो, हमारे अंदर अहंकार, अहम और न जाने कितने विकार उत्पन्न होते हैं। त्याग, उन विकारों को खत्म करने की क्षमता देता है, समझ प्रदान करता है। जब हम किसी कार्य में नाकाम हो जाते हैं, असफल हो जाते हैं, तब हमारे अंदर भय, डर, क्रोध, लोग और न जाने कितने प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं, उन सारे विकारों से त्याग हमारी रक्षा कर लेता है। इन सारे विकारों की भूल भुलैया से बाहर निकलने की समझ और शक्ति प्रदान करता है। एक छोटे से वाक्य में अगर कहना चाहूं तो, वह यह हो सकता है कि, त्याग हम मनुष्यों के लिए रिसेट का बटन है। त्याग ही वह गुण है, जो हमें, हमारे जीवन को रिसेट करता है। और नई शुरुआत करने की प्रेरणा देता ह...

विषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः।

  धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।  मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥ धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया? संजय उवाच दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।  आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌॥ संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌।  व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥ हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।  युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥ धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌।  पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः॥ युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥ इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और...

दुनिया के सारे प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन मिल गया जान लो बहुत काम आएगा

   हम जिस संसार में रहते हैं, उस संसार में कोई एक दिन भी बिना प्रॉब्लम्स के, बिना परेशानी के, बिना स्ट्रगलिंग के निकाल ले तो उसके लिए सच में वह दिन सबसे अच्छा दिन कहा जाएगा। हर समय इंसान किसी ना किसी उलझनों में फंसा ही रहता है। और यह सही भी है, क्योंकि यह इस संसार का यूनिवर्सल नियम है, जो इस संसार में आया है उसे प्रकृति द्वारा बाधित किया जाता है कम करने के लिए। और वह बढ़ाएं प्रॉब्लम्स के रूप में हमारे सामने आती हैं। उन प्रॉब्लम्स के कारण ही हम अपने जीवन में कार्यरत रहते हैं, गतिशील रहते हैं। क्योंकि हमारी जरूरत हमें कभी भी स्थिर नहीं रहने देती। अगर ज़रूरतें खत्म हो जाए और हम स्थिर हो जाएं तो, वह स्थिरता प्रॉब्लम्स और परेशानी का रूप ले लेती है। प्रॉब्लम्स जीवन में ना हो यह संभव ही नहीं पर उन प्रॉब्लम्स को फेस कर कर उनका निराकरण संभव है।    यहां हम बात कर रहे हैं, प्रॉब्लम से भागने, छुपाने या बचने की नहीं बल्कि प्रॉब्लम्स को फेस करके उसका निराकरण करने की। निराकरण प्रभावी तरीके से हो जाए इसके लिए मैं आपको एक ट्रिक बताऊंगा। जिससे आप बहुत ही आसानी से दुनिया के किसी भी प्र...

आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः

  ( कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण )   श्रीभगवानुवाच  अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः। स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥ श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव। न ह्यसन्न्यस्तसङ्‍कल्पो योगी भवति कश्चन॥ हे अर्जुन! जिसको संन्यास (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) जान क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते। योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते॥ योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष के लिए योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही हेतु कहा जाता है और योगारूढ़ हो जाने पर उस योगारूढ़ पुरुष का जो सर्वसंकल्पों का अभाव है, वही कल्याण में हेतु कहा जात...

हां, डर लगता है मुझे,

हां, डर लगता है मुझे, उन झुर्रियों वाले हाथों को देखकर, जो आशा की भीख मांगते हैं। हां, डर लगता है मुझे, उन निर्दोष आंखों को देखकर, जो सहारे की तलाश में हैं। हां, डर लगता है मुझे, मेरी माँ के सपनों को अधूरा छोड़ देने से। हां, डर लगता है मुझे, उन छोटे हाथों को थामे, सही मार्ग न दिखा पाने से। हां, डरता हूँ मैं, झूठ के बोझ तले दबने से, और अनैतिकता के रास्ते पर चलने से। हां, डरता हूँ मैं, मेरे पिता की आशाओं पर खरा न उतर पाने से। हां, डरता हूँ मैं, जीवन को यूँ ही व्यर्थ गवां देने से। हां, डरता हूँ मैं, किसी के काम न आ पाने से।

कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः

 (ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण) अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥ अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव! मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं? व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे। तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्‌॥ आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं। इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ श्रीभगवानुवाच लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ। ज्ञानयोगेन साङ्‍ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्‌॥ श्रीभगवान बोले- हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा (साधन की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम 'निष्ठा' है।) मेरे द्वारा पहले कही गई है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से (माया से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरतते हैं, ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं में कर्तापन के अभिमान से रहित हो...

प्रश्न यानी क्वेश्चन क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है हमारे जीवन में?

प्रश्न यानी क्वेश्चन क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है हमारे जीवन में? प्रश्न एक ऐसी भाषायी अभिव्यक्ति है जिसका उपयोग हम सूचना या जानकारी प्राप्त करने या देने के लिए करते हैं, शंका का समाधान करने या जिज्ञासा को शांत करने के लिए करते हैं। प्रश्न नई शुरुआत की उम्मीद के साथ-साथ एक बेहतर भविष्य तरफ ले जाने वाला कारक है। प्रश्न अर्थात ज्ञान अर्जित करने की संभावना, संभावना एक उज्जवल और विकसित जीवन शैली की। भारतीय संस्कृति में प्रश्नों का बहुत महत्व है। यहाँ तक कि कुछ विचारकों का मानना है कि भाषा का आविष्कार ही प्रश्न करने के लिए हुआ है। प्रश्नोत्तर परंपरा को सत्य की खोज के एक प्रमुख उपकरण के रूप में देखा जाता है, और इसे विकास और ज्ञान के मार्ग में एक अहम् भूमिका माना जाता है। जीवन में प्रश्नों की उपयोगिता अत्यंत व्यापक है। वे हमें नई दिशाओं में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं, समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करते हैं, और हमारी समझ को गहरा करते हैं। प्रश्न हमें अपने आस-पास की दुनिया और खुद को बेहतर समझने का अवसर देते हैं। वे हमें चिंतनशील बनाते हैं और हमारी जिज्ञासा को जागृत करते हैं, जो कि आत्म-...

मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं? कौन-कौन से प्रकार का मनुष्य है यह कैसे पहचाना जा सकता है?

मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं? कौन, -कौन से प्रकार का मनुष्य है यह कैसे पहचाना जा सकता है? आपको पता है इस पृथ्वी पर बहुत सारे रंग, भेद, भाषा, वाणी न जाने कितने अलग-अलग प्रकार के लोग रहते हैं। पर सच तो यह है इस पृथ्वी पर केवल दो ही प्रकार के व्यक्ति है जिन्हें आप इस पोस्ट के माध्यम से जानेंगे  विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं के बीच, अक्सर यह कहा जाता है कि मनुष्यों को दो मुख्य प्रकारों में बांटा जा सकता है: सकारात्मक या निर्माणात्मक व्यक्ति (Constructive or Positive Individuals), ये वे लोग होते हैं जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करते हैं। उनके गुणधर्म में सहानुभूति, सहयोग, और उदारता शामिल होती है। वे अपने और दूसरों के जीवन में सुधार और विकास के लिए प्रयासरत रहते हैं। नकारात्मक या विध्वंसात्मक व्यक्ति (Destructive or Negative Individuals), इसके विपरीत, ये वे लोग होते हैं जो नकारात्मकता और विध्वंस की ओर झुकाव रखते हैं। उनके गुणधर्म में ईर्ष्या, क्रोध, और स्वार्थ शामिल हो सकते हैं। वे अक्सर समाज में तनाव और विभाजन पैदा करते हैं। हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम...