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इस ब्लॉग पोस्ट का आरंभ करने से पहले मैं आप सबको बता देना चाहता हूं, की मां सीता एक इतनी महान चरित्र के आदर्श को संपूर्ण रूप से बता देने में, समझा देने में मैं क्या कोई भी सक्षम नहीं होगा। पर मैं मां सीता के आशीर्वाद से कोशिश करूंगा की उन आदर्शों के वैल्यू को अपने ब्लॉग पोस्ट में अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से दर्शा सक्कू। बाकी सब मां सीता के आशीर्वाद पर छोड़ देते हैं। जय मां सीता जय श्री राम।
हम आप हम सभी बखूबी जानते हैं मां सीता के बारे में। मां सीता जिन्होंने आदर्श के कीर्तिमान को स्थापित किया एक नारी के रूप में, एक पत्नी के रूप में, एक मां के रूप में। मां सीता ने अपने जीवन चरित्र के माध्यम से एक नारी को किस प्रकार जीवन जीना चाहिए इसकी सीख दी है। मां सीता ने अपने जीवन चरित्र में उन मूल्यों को उजागर किया है, जिन मूल्यों के राह पर चलकर हर एक नारी एक आदर्श मां बन सकती है, एक आदर्श पत्नी बन सकती है, एक आदर्श नारी बन सकती है। मां सीता का जीवन चरित्र प्रेरणा स्रोत है हर नारी के लिए। इस धरती पर जो कोई भी वूमेंस अगर मां सीता द्वारा आचरीत जीवन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाएगी, उनका अनुसरण करेगी तो उस नारी को एक आदर्श नारी, एक आदर्श मां और एक आदर्श पत्नी बनने से कोई नहीं रोक सकता।
कर्तव्य निष्ठा: जैसा कि हम सभी जानते हैं की मां सीता ने कर्तव्य निष्ठा के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं, जो आज भी कर्तव्य निष्ठा के मार्ग को प्रकाशित कर रहे हैं। और हम सभी को कर्तव्य निष्ठ बने रहने की प्रेरणा दे रहे हैं।
मां सीता ने अपने सारे जीवन कर्तव्यों को बहुत ही कुशलता से संपूर्ण रूप से निभाया है। चाहे वह कर्तव्य एक आदर्श मां के रूप में हो या एक महान पत्नी के रूप में हो या एक वीरांगना नारी के रूप में हो। उनके सामने जिस समय, जो भी कर्तव्य आए उन्होंने उनका संपूर्ण रूप से निभाया है। हमने आपने हम सभी ने यह देखा है कि मां सीता ने विषम से विषम, मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य को नहीं त्यागा है। सदा उनको निभाया है।
आज की नारी को मां सीता से कर्तव्य निष्ठा को कैसे निभाया जाए इसकी सीख लेनी चाहिए। और अपने जीवन को कर्तव्य निष्ठ बनाना चाहिए। एक आदर्श कर्तव्य निष्ठ मां बनने के लिए, एक आदर्श पत्नी बनने के लिए और एक आदर्श नारी बनने के लिए मां सीता के जीवन से सीख लेनी चाहिए और उन सिखों को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
जीवन में कर्तव्य निष्ठा एक ऐसा गुण है जो जीवन को उन्नति, प्रगति और खुशियों के मार्ग पर ले जाता है।
त्याग: मां सीता ने त्याग के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जो आज भी नारी समाज को त्याग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। त्याग एक ऐसा गुण है जो इंसान को सदा सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर रखता है।
त्याग के बिना किसी के लिए भी आदर्शवादी बनना या किसी के लिए आदर्श बनना असंभव है। क्योंकि एक आदर्श मां, एक आदर्श पत्नी और एक आदर्श नारी बनने के लिए मुख्य इनग्रेडिएंट त्याग ही है।
मां सीता त्याग की मूर्ति है, उन्होंने अपने जीवन में इतने महान त्याग किए हैं जिन्हें सोच कर भी हृदय और आत्मा में उनके प्रति सम्मान से भर आती है।
सतीत्व: माता सीता एक सती नारी थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान श्री राम को समर्पित कर दिया था। भगवान श्री राम को ही अपना सर्वस्व माना था। माता सीता ने अपने सतीत्व धर्म को अपने जीवन से भी ऊपर स्थान दिया था। माता सीता ने सतीत्व धर्म के रास्ते में आने वाली बड़ी से बड़ी बढ़ाओ को भी स्वीकार किया उनसे संघर्ष किया और सदा अपने सतीत्व धर्म पर एडिट रही। आज की नारी के लिए माता सीता एक महान उदाहरण है सतीत्व की। माता सीता ने अपने जीवन काल में सतीत्व धर्म को पालन करने के लिए, जो भी त्याग करना पड़ा उन सब का त्याग किया, जिन भी बढ़ाओ से लड़ना पड़ा उन सब से उन्होंने संघर्ष किया और उन पर विजय प्राप्त कीया और सदा अपने सतीत्व धर्म पर एडिट रही।
एक स्त्री को देवी तुल्य बना देने वाला गुन उसका सतीत्व ही होता है। एक स्त्री की सतीत्व की शक्ति इतनी महान होती है कि उसके सामने देवता, दानव या इस संसार की कोई शक्ति जीत नहीं सकती। एक स्त्री के सतीत्व के सामने इस संसार की हर एक शक्ति नतमस्तक होती है।
धैर्य-संयम: धैर्य साहस का ही एक स्वरूप है। और इसमें कोई दो राय है ही नहीं की माता सीता साहसी नहीं थी। माता सीता ने अपने कर्तव्य पालन के लिए स्वयं से ही वनवास में जाना स्वीकार किया था। रावण की अशोक वाटिका में रहते हुए, राक्षसों के बीच रहते हुए, उन्होंने कभी भी अपने संयम को नहीं खोया। सदा अपने विश्वास को भगवान श्री राम पर बनाए रखा। अशोक वाटिका में रहते हुए रावण ने अपनी पूरी शक्ति और क्षमता से माता सीता के धैर्य और संयम को तोड़ने का प्रयास किया। पर वह संपूर्ण रूप से असफल हुआ। आज की नारी को माता सीता से अगर कोई गुण सीखना है तो, वह धैर्य और संयम का हो सकता है।
एक नारी के अंदर अगर धैर्य, संयम हो तो वह अपने पूरे परिवार को संतुलित रख सकती है और उनकी उन्नति, प्रगति में मदद कर सकती है।
विश्वास: माता सीता ने सदैव भगवान श्रीराम पर विश्वास रखा और उस विश्वास को मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी स्थिर रखा, अखंडित रखा। उनका भगवान श्री राम पर विश्वास ही है कि आज हम जय सियाराम कहते हैं। माता सीता का विश्वास भगवान श्री राम के प्रति इतना निर्मल और पवित्र था की, भगवान श्री राम के प्रत्येक निर्णय को माता सीता ने बिना किसी संकोच के सहजता से ही स्वीकार कर लिया। और सदा एक साथी की तरह उनके हर निर्णय में उनके साथ खड़ी रही।
आज की नारी को अगर विश्वास के महत्व को समझना हो तो वह माता सीता के जीवन चरित्र से समझ सकती हैं। विश्वास एक ऐसी शक्ति है जो मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी संबंधों को बांधे रखती है।
प्रेम: मां सीता प्रेम और ममता की एक मूरत है। एक आदर्श पत्नी के रूप में उन्होंने भगवान श्री राम से अत्यंत शुद्ध और पवित्र प्रेम किया। और एक आदर्श मां के रूप में उन्होंने अपने दोनों बच्चों को ममता के रूप में धर्म, न्याय, नीति की शिक्षा प्रदान की। उन्होंने मां के रूप में अपने सारे कर्तव्यों का संपूर्णता से पालन किया। और समाज को, अपने देश को एक सक्षम नागरिक और राजा दिया।
आज की स्त्री शक्ति को मां सीता से सच्चे प्रेम की सीख लेनी चाहिए। और मां सीता के जीवन चरित्र से सच्चे प्रेम के महत्व को समझना चाहिए।
समर्पण: माता सीता ने अपने संपूर्ण जीवन को भगवान श्री राम को समर्पित कर दिया था। भगवान श्री राम के आदेशों को पालन करना और जीवन को उनके हिसाब से जीना ही माता सीता के लिए धर्म में जीवन था। माता सीता के इस समर्पण के कारण ही भगवान श्री राम और माता सीता ने अपने जीवन में एक सच्चे प्रेम और समर्पण के उच्चतम एग्जांपल को समाज के उत्थान और विकास के लिए प्रस्तुत किया। माता सीता द्वारा प्रस्तुत किए गए जीवन चरित्र रूप एग्जांपलों के कारण ही आज मानव समाज, स्त्री समाज धर्म न्याय नीति के उच्चतम स्तर पर है।
जिस भी स्त्री ने माता सीता से समर्पण के इस गुण को सिखा उसका जीवन सदा प्रेम से भरा हुआ रहेगा। और उसके पारिवारिक संबंध सफलता की उच्चतम कोटी को छुएंगे।
साहस: हम सब जानते हैं भगवान श्री राम अत्यंत साहसी थे, और उनके साथ-साथ माता सीता भी अत्यंत साहसी थी। माता सीता एक स्त्री थी फिर भी उन्होंने 14 वर्ष वन में बिताया, वह भी नीति, न्याय और धर्म का पालन करते हुए एक योगिनी की भांति। देखा जाए तो माता सीता ने साहस के उन उच्चतम स्तरों को प्रस्तुत किया है, जिस मे साहसी से साहसी इंसान भी अपने साहस का त्याग कर दे।
अगर साहस के सच्चे स्वरूप को देखना हो तो वह हमें माता सीता के जीवन चरित्र में दिखाई देता है। साहस एक ऐसा महान गुण है जिसके द्वारा इंसान इंसान से देव तुल्य इंसान बन सकता है।
विवेक: माता सीता अत्यंत विवेकी थी। उन्होंने जीवन के ऐसे फैसले, जिसमें ज्ञानी से ज्ञानी व्यक्ति और साधु से साधु व्यक्ति भी धर्म संकट में पड़ जाए, उन फसलों को भी अत्यंत सहजता से धर्म, नीति, न्याय में रहते हुए सही फैसले लिए हैं। माता सीता का विवेक ही है जो उन्हें एक आदर्श नारी, एक आदर्श मां, और एक आदर्श पत्नी इन तीनों जिम्मेदारियां को, इन तीनों रूपों को सफलतापूर्वक निभाने में मददरूप साबित हुआ।
यह अक्सर देखा गया है जो भी स्त्री विवेकी होती है वह सदैव अपने परिवार को संगठित रखते हुए उनके उन्नति, प्रगति और विकास में मदद करती है। वह अपने विवेक के माध्यम से अपने परिवार में हमेशा खुशी का माहौल बनाए रखती है।
क्षमा: मां का एक रूप क्षमा ही होता है। माता सीता ने अपने जीवन में क्षमा के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जो इतने महान है कि, उन्हें शब्दों में बता पाना नामुमकिन है। मां सीता ने क्षमा के उस सात्विक भाव को प्रदर्शित किया है, जिस भाव के द्वारा इंसान सदैव खुश रहता है। उसका इस संसार में कोई वेरी नहीं रहता। माता सीता ने उन विषम परिस्थितियों में भी क्षमा धर्म के भाव को नहीं त्याग, जिन विषम परिस्थितियों में अत्यंत उदार व्यक्ति भी अपने इस क्षमा धर्म के भाव को त्याग दे।
क्षमा इस एक गुण को अगर व्यक्ति अच्छी तरह समझ ले तो, उसके जीवन से संपूर्ण रूप से नाश हो जाएगा स्ट्रेस का, एंजायटी का, डिप्रेशन का। और जीवन परिपूर्ण हो जाएगा खुशियों से शांति से। क्षमा सुधरता है आपके पारिवारिक रिश्तों को, सामाजिक रिश्तों को साथ ही साथ व्यावसायिक रिश्तो को भी।
और अंत में, मैंने जो गुणगान किया माता सीता के जीवन चरित्र का, उनके गुनो का वह सिर्फ लेस मात्र है। उनकी महानता तो मेरे इस गुणगान से कई लाख गुना अधिक है।
जय सियाराम
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