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आज का जो इस ब्लॉग पोस्ट का कांसेप्ट है, वह कौरवों के विनाश के छुपे हुए रहस्य के बारे में है। जिनके बारे में कोई नहीं जानता या जानता भी है तो बताना नहीं चाहता। हमें बहुत पहले से ही यह बताया और पढ़ाया जा रहा है कि कौरवों ने बहुत दुराचार, पाप, अनाचार किया इस वजह से उनका विनाश हुआ। वही एक छोटी सी बात सोचने जैसी है कि उन कौरवों में परम पूजनीय पितामह भीष्म भी थे, आदरणीय गुरु द्रोणाचार्य भी थे, और हम दानवीर कर्ण को कैसे भूल सकते हैं वह भी तो थे कौरवों के साथ उनकी सेना में, यह तीनों तो परम धर्मात्मा माने जाते थे, सदा ही धर्म न्याय नीति का अनुसरण करते थे और उसके मार्ग पर चलते थे, फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था जिसके कारण कौरवों का समूल विनाश हो गया।
एक मिथ्या हमारे समाज में बहुत समय से फैलती और प्रसारित होती आ रही है की कौरवों के विनाश का कारण भगवान श्री कृष्णा थे। जबकि इसे एक मिथ्या ही कहेंगे क्योंकि भगवान श्री कृष्णा कभी भी किसी समाज विशेष, व्यक्ति विशेष के विनाश का कारण नहीं हो सकते। वह तो किसी व्यक्ति के लिए, किसी समाज के लिए, किसी समुदाय के लिए विकास, उन्नति और धर्म का कारण हो सकते हैं, विनाश का तो कतई नहीं। उन्होंने केवल और केवल पाप, दुराचार, अधर्म का ही नाश किया है। पर यह सोचने वाली बात है कि जब कौरवों की सेना में इतने सारे धर्मात्मा, दानवीर महापुरुषों के होने के बावजूद भी उनका समूल विनाश क्यों हो गया।
एक और मिथ्या है जो हमारे समाज में बहुत समय से प्रसारित होते आ रही है, की दुर्योधन ने अपने समाज का कौरवों का विनाश कराया। जरा आप ही सोच कर देखिए की कोई एक व्यक्ति भले ही शारीरिक रूप से कितना भी बलवान हो क्या वह पूरे समाज का विनाश करवा सकता है नहीं ना। दुर्योधन शारीरिक रूप से भले ही कितना भी शक्तिशाली था लेकिन मानसिक रूप से वह इतना शक्तिशाली नहीं था कि वह अपने वंश का कौरवों का समूह विनाश करा सके।
जो बातें प्राचीन समय से हमारे समाज में प्रसारित हो रही हैं अगर वह सभी मिथ्या है तो सत्य क्या है। क्योंकि कौरवों का विनाश तो हुआ था। और एक समाज का समूल विनाश होना उसके लिए कोई तो कारण होगा, उसका कोई तो जिम्मेदार होगा। तो चलिए इस रहस्य को उजागर करते हैं और बताते हैं उस रहस्य को जिसने कौरवों का विनाश कराया।
जिन्होंने भी महाभारत देखा या पढ़ा होगा वह सब अवगत होंगे परम ज्ञानी बुद्धि शाली शकुनि के बारे में, जो दुर्योधन के मामा के रूप में जानने में आते हैं। यह जो शकुनी मामा थे, वह एक बहुत बड़े करण थे कौरवों के समूल विनाश करा देने के लिए।
बिल्कुल आप सही सुन रहे हैं मैं किसी शारीरिक रूप से योद्धा की बात नहीं कर रहा हूं। यहां मैं उसे व्यक्ति की बात कर रहा हूं जो परम योद्धा था मानसिक और कूटनीतिक तौर पर। एक बार तो भगवान श्री कृष्ण ने भी प्रभावित होकर शकुनि की प्रशंसा की थी, कि अगर तुम अधर्म की तरफ नहीं होते तो आज तुम्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। भगवान श्री कृष्ण ने कहा था तुम जैसी सूझबूझ और कूटनीतिक व्यक्ति बिरला ही जन्म लेते हैं।
जैसा कि हम सब ने महाभारत में यह तो देखा है कि जब परम पूजनीय भीष्म पितामह गंधार जाते हैं, और मामा शकुनी की बहन गांधारी को बलपूर्वक हस्तिनापुर लेकर आते हैं, और उनका विवाह धृतराष्ट्र के साथ करा देते हैं। इस कारण गांधारी ने भी अपने आंखों पर सदैव के लिए एक पट्टी बांध लीया और प्रतिज्ञा लिया की मैं भी इन आंखों से कभी भी इस पट्टी को नहीं हटाऊंगी।
अपनी बहन की ऐसी दुर्दशा देख मामा शकुनि अत्यंत क्रोधित हुए पर वह शारीरिक और हस्तिनापुर से कमजोर राष्ट्र होने के कारण उनसे युद्ध नहीं कर पाए। (पर वह मानसिक रूप से अत्यंत प्रबल योद्धा थे कूटनीतिक तौर पर भी प्रबल योद्धा थे) यह सब देख मामा शकुनि ने प्रण लिया कि चाहे कितना भी वर्ष लगे में कौरवों के वंश का विनाश करा दूंगा।
आगे की स्टोरी आप सबको विदित है, की कैसे मामा शकुनि ने केवल अपने दिमाग और कूटनीतिक तौर पर ही महाभारत में पूरे वंश का विनाश करा दिया।
नोध: कौरवों के विनाश के लिए बहुत सी कथाएं, कहानी, बातें प्रचलित है वह सब पूरी तरह से मिथ्या है इसका कोई प्रमाण नहीं है। मैं इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से कौरवों के विनाश के छुपे हुए करण, राज का खुलासा करने का प्रयास किया है। जो उन सभी कारणे में से एक कारण हो सकता है जिनके कारण कौरवों का विनाश हुआ।
अब बात आती है सखी की इतने महान ग्रंथ महाभारत की बात करें और उनकी कथाओं मैं सीख ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता।
अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली हो, कितना भी विशाल हो उसे एक न एक दिन धर्म के सामने झुकना ही पड़ता है हारना पड़ता है।
जब भी हम अन्याय, अनीति और स्वार्थ का पौधा लगाएंगे तब हमें इस बात का ध्यान रखना है की यह पौधा एक दिन बरा होगा, फलीभूत अवश्य होगा। और उस पौधे का फल हमें ही खाना होगा। हां यह हो सकता है की उसे अनीति, अधर्म और स्वार्थ के पौधे को बढ़ाने में फल देने लायक एक बड़े पेड़ बनने में समय लग सकता है। लेकिन यह मत सोचना कि उस अनीति, अधर्म और स्वार्थ के पेड़ पर फल नहीं आएंगे, फल अवश्य आएंगे और उन फलों को खाना भी होगा आपको। और उनसे होने वाले दुष्परिणामों को भोगना भी होगा।
अनीति, अधर्म, स्वार्थ को करने के लिए आपके पास चाहे कितने भी वैलिड कारण क्यों ना हो, समय आने पर अनीति अधर्म और स्वार्थ में आकर किए हुए कार्य का दुष्परिणाम फलीभूत होता ही है और उसे भोगना ही पड़ता है।
इस बात को सदैव याद रखिएगा कि जब भी आप अनीति अधर्म और स्वार्थ में आकर कोई भी कार्य करेंगे, हो सकता है की उसे समय आपको उसके कोई दुष्परिणाम न झेलना पड़े, पर यह समय का न्याय है जो किसी को नहीं छोड़ता जब भी समय आएगा इस अनीति अधर्म का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ेगा।
नीति, न्याय, धर्म द्वारा किए गए कार्य सदा ही अच्छे फल देते हैं। और मानव जीवन, मानव संस्कृति को विकास की ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। सदैव सबके साथ, हर किसी के साथ न्याय, नीति, धर्म का वर्तन करें।
मेरी मेरे भगवान श्री कृष्ण से आप सभी के लिए प्रार्थना है की हे ईश्वर सबको इतनी सोच-समझा और इतनी बुद्धि दो कि वह सदा नीति, न्याय और धर्म के मार्ग पर चले। परोपकारी बने, धर्मात्मा बन जय श्री कृष्णा।
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