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हां, डर लगता है मुझे,

पति पत्नी के जीवन का संघर्ष एक आत्मकथा बस यह एक बात जान लो जीवन भर जाएगा प्रेम, सुख और शांति से।

इस पोस्ट को लिखने का मकसद केवल इतना है, की वैवाहिक जीवन जिसके नायक और नायिका 'पति और पत्नी' मिलकर रहे, सुख और शांति से अपना जीवन जी सके। और अपने वैवाहिक जीवन को सुख शांति और समृद्धि की ऊंचाइयों तक ले जा सके। हां यह संभव है, अगर आपने इस पोस्ट को अच्छे से समझा तो यह हो सकता है। 

अक्सर देखने में आया है कि, जब भी पति और पत्नी कुछ देर तक साथ बैठे और बातें करें, बातें करते-करते न जाने ऐसा क्या होता है, जिससे पति या पत्नी दोनों में से कोई एक क्रोधित हो जाता है। और फिर झगड़ा स्टार्ट हो जाते हैं।

मैं मानता हूं कि, हम सभी को जीवन में कभी ना कभी प्रेम अवश्य हुआ होगा। कितनों ने अपने प्रेम का इजहार किया होगा और उनमें से कितनों को उनका मनपसंद साथी मिला होगा। कभी आपने विचार किया है, जब आप प्रेमी प्रेमिका की भूमिका में थे, तब आप बहुत देर तक एक साथ बैठकर बातें करते थे तब तो झगड़ा नहीं होते थे। तब तो सुख और आनंद की प्राप्ति होती थी। और हृदय में यह भाव हमेशा चलता रहता था, काश कुछ क्षण और मिल जाए साथ रहने का।

पर वही जोड़ा, मैं सब की बात नहीं करता अपवाद होते हैं, पर मेजोरिटी यही है, कि वही जोड़ा जब शादी के बंधन में बंध जाता है, और कुछ समय बीत जाता है, तब वह साथ बैठते हैं और कुछ समय बात करते हैं उनमें झगड़े स्टार्ट हो जाते हैं। कभी विचार किया है इसका कारण क्या हो सकता है। इस गूथी को समझने में, मैं आपकी पक्का मदद करूंगा।

जब हम प्रेमी और प्रेमिका थे तब भी शरीर सोच मन सब यही था, सिर्फ बदला क्या रिश्ता, जो रिश्ता पहले सिर्फ प्रेम पर आधारित था, उसे सामाजिक रूप देकर पति और पत्नी के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। बस इतना सा ही फर्क है। तब मैं और अब में बाकी फिजिकली रूप से मेंटल रूप से हम वही हैं, जो पहले थे।

कुछ ना बदलकर भी जीवन से सुख, शांति, प्रेम और जीवन का आनंद सब खो सा क्यों गया। विचार कर कर भी मन में ऐसा हो रहा है जैसे कि क्या हो गया समझ ही नहीं आ रहा है। काफी समय उदास रहने रहने के बाद, घंटे अकेले रहने के बाद फाइनली आज मैंने यह समझ लिया की तब में और अब मैं ऐसा क्या बदल गया है, जिसने जीवन के सुख, शांति, प्रेम और जीवन के आनंद को निगल लिया है।

शादी से पहले हर पल हर घड़ी उनसे मिलने का मन करता था, उनके पास जाने का मन करता था, उनसे बातें करने का मन करता था, उनके साथ रहने का मन करता था। हर समय दिल और दिमाग में केवल और केवल वही चला करते थे। यहां तक के जीवन का अर्थ भी वही थे।

अब उनसे मिलने की बात तो छोड़ो शाम को नौकरी से वापस घर जाना है, और फिर उनसे जाकर मिलना है इस बात से भी मन घबराता जाता है। जो पहले आकर्षण का केंद्र थे, आज वह हमें डरा रहे हैं। क्या बदल गया ऐसा जिसने जीवन को ही बदल दिया।

शादी से पहले जिनकी बातों को याद कर कर हम मन ही मन में मुस्काया करते थे। उनसे की बातों को सोचकर मन में रोमांस उत्पन्न हो जाता था। ऐसा क्या बदल गया जो वह सब एक झटके में खो गया।

शादी से पहले जो जीवन सुखों का भंडार और प्रेम का सागर लगता था। ऐसा क्या बदल गया जो आज संघर्ष का सागर लग रहा है। दुखों का पहाड़ और अथक निराशा दिख रही है।

इस गूथी को समझने में इस गांठ को खोलने में 7 साल लग गए। दोस्त अब जाकर समझ आया कि ऐसा क्या बदल गया जो पहले सुख का सागर था आज दुखों का समुद्र है।

और इस जीवन की विडम्बना तो देखो, जो पहले दोनो ही पक्षों के लिए सुख का सागर था। आज दोनों ही पक्षों के लिए ना खत्म होने वाला दुखों का समुद्र बन गया है।

यह सोचकर अफसोस होता है की, कास इस गूथी को इस गांठ को हमने तभी खोल लिया होता तभी समझ लिया होता। जिस समय हम विवाह के बंधन में बंधे। तो हमें अपने जीवन के बहुमूल्य 7 साल यूं दुखों के समुद्र में तैरते हुए ना बिताना पड़ता।

हमने जो अपने जीवन के 7 साल यू गुजार दिए वह 7 साल जो कुछ और हो सकते थे। प्रेम, सुख, शांति और एक दूसरे के साथ हो सकते थे। ऐसा दूसरे किसी भी कपल्स के साथ ना हो इसलिए मैंने यह ब्लॉग पोस्ट लिखने का सोचा।

सबको जीवन का साथ मिले, वह भी प्रेम भरा साथ मिले, सुख और शांति भर साथ मिले यही मकसद है, इस ब्लॉक पोस्ट के लिखने का।

ऐसा क्या बदल गया तब और अब मैं, उस बदलाव को समझाने का प्रयास करता हूं मैं आप सब को।

शादी से पहले जब हम प्रेमी जोड़े थे, तब हम साथ बैठते थे, तब हम एक दूसरे को समझने का प्रयास करते थे। एक दूसरे की बातों को समझने का प्रयास करते थे। तर्कों के माध्यम से न्याय, नीति, धर्म और प्रेम के माध्यम से। जीवन का एकमात्र उद्देश्य था एक दूसरे की प्रसन्नता। उस समय हम हर उस बात को बहुत सहजता से ही एक्सेप्ट कर लेते थे जिसमें हमारे साथी की खुशी होती थी। हमारे लिए एक दूसरे के साथ के अलावा दूसरा कुछ भी बहुत महत्व नहीं रखता था। और एक बात, प्रेम के साथ-साथ एक दूसरे के लिए सम्मान भी भरपूर था। एक दूसरे के प्रति कुछ भी करते थे, वह हमारे लिए एक दूसरे के प्रति प्रेम, स्नेह और सम्मान होता था। शादी से पहले हम दोनों के लिए प्रेम, समर्पण और त्याग ही आदर्श थे हमारे। शादी से पहले हम अपनी गलतियों को मानकर, सुधार कर, एक दूसरे के साथ रहने का प्रयास करते रहते थे।

अब शादी के बाद जब हम एक पति-पत्नी है। अब हम साथ बैठे हैं तब, हम एक दूसरे को समझने का प्रयास नहीं करते, एक दूसरे को समझाने का प्रयास करते हैं। एक दूसरे की बातों को सुनकर समझने का प्रयास नहीं करते, अपनी बातों को सुना कर उसे समझाने का प्रयास करते हैं। शादी से पहले हम दोनों एक दूसरे की बातों को तर्क के माध्यम से, नीति, न्याय, धर्म और प्रेम की तराजू पर रखकर समझने का प्रयास करते थे। और अब अपनी ज़रूरतें, अपनी मायके की जरूरते, समाज की जरूरते इन ज़रूरतों के तराजू पर रखकर एक दूसरे की भावनाओं को बातों को तोलते हैं। पहले जो बातें प्रेम और एक दूसरे की साथ का एहसास कराती थी, आज वह बातें व्यापार हो गई है। आज हम एक दूसरे के लिए कुछ भी करते हैं, तो वह एहसान की तरह हो गया है, प्रेम की बातें तो छोड़ो, दिन और रात एक दूसरे के माथे पर यह ठोपने का प्रयास करते रहते हैं कि, मैंने तुम्हारे लिए इतना सारा त्याग किया है, तुम पर इतना सारा एहसान किया है। जो पहले प्रेम, त्याग, समर्पण आदर्श हुआ करते थे, आज वह एहसान के रूम में आदर्श बन गये है हमारे। अब शादी के बाद एक दूसरे की गलतियों को उजागर कर कर, खोज कर उनसे दूर जाने का प्रयास करते रहते हैं।

शारीरिक रूप से तो कुछ नहीं बदला पर मानसिक रूप से भावनात्मक रूप से सब कुछ बदल गया है।

मैं आशा करता हूं, आप सब इस ब्लॉग पोस्ट पढ़ कर कर जीवन की इन गांठो को, इन उलझन को समझेंगे खोलेंगे और फिर से एक प्रेम भरा सुख समृद्धि और शांति से भरा जीवन जीने का प्रयास करेंगे। मेरी आशा है कि, आप प्रयास अवश्य करेंगे और आप कामयाब भी जरूर होंगे।

                  ।।आप सभी को जय श्री कृष्णा।। 

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