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पांच योगा पोज जो रनिंग और जॉगिंग से ज्यादा कैलोरी और फैट को बोर्न करते हैं

पांच योगा पोज जो रनिंग और जॉगिंग से ज्यादा कैलोरी और फैट को  बोर्न करते हैं


बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्हें रनिंग, जॉगिंग, एक्सरसाइज करना पसंद नहीं पर वह स्वस्थ रहना चाहते हैं। उनके लिए मैं लेकर आया हूं पांच ऐसे योगा पोज जो उनकी एक्स्ट्रा कैलोरी को Burn करेंगे, एक्स्ट्रा फैट को Burn करेंगे, साथ ही साथ शारीरिक क्षमता, मानसिक क्षमता को भी सुधरेंगे। चलिए बिना देर किए शुरू करते हैं इस स्वास्थ्य वर्धक ब्लॉग पोस्ट को।

निम्नलिखित पांच योगासन आपको रनिंग और जॉगिंग से अधिक गैलरी और फैट को जलाने में मदद कर सकते हैं:

सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar): सूर्य नमस्कार एक पूर्ण शरीर का व्यायाम है जो संभावित रूप से सभी शारीरिक समस्याओं का सामना करने में मदद कर सकता है, सहित है, गैलरी और फैट को कम करने में मदद कर सकता है।

सूर्य नमस्कार एक प्राचीन योगाभ्यास है जो सूर्य की पूजा और समर्पण के रूप में किया जाता है। यहाँ सूर्य नमस्कार का एक साधारण तरीका है:

1. प्रारम्भ करें ध्यान के साथ, अपने श्वास को नियंत्रित करें।
2. उठें और अपने पैरों को सम्मुख करें, हाथों को प्रारंभिक स्थिति में उठाएं।
3. अपने हाथों को समेटें और प्रणाम करें (नमस्ते)।
4. सांझ करें और उच्च नमस्ते कहें, हाथों को ऊपर उठाएं।
5. अपने हाथों को फिर से नीचे लाएं और पैरों को पीछे करें, एक अधोनमस्ते करें।
6. धीरे-धीरे श्वास को नियंत्रित करते हुए पहले आराम से और फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ें।
7. यही स्थिति को करते हुए अन्य पक्ष के लिए नमस्ते को दोहराएं।
8. सूर्य नमस्कार के एक पूरे सेट को पूरा करने के बाद, आराम से बैठें और ध्यान में रहें।

ध्यान रखें कि सूर्य नमस्कार की गति और संख्या व्यक्तिगत आधारित हो सकती है, इसलिए आप अपने आवश्यकतानुसार इसे समायोजित कर सकते हैं।

सूर्य नमस्कार करने के कई फायदे हो सकते हैं, जैसे कि:
1. शारीरिक लाभ: सूर्य नमस्कार से शारीरिक क्षमता बढ़ती है, मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और शारीरिक लक्षणों को कम किया जा सकता है।
2. मानसिक स्थिरता: इस अभ्यास से मानसिक तनाव कम होता है, मानसिक स्थिति में सुधार होता है, और मानसिक शांति मिलती है।
3. श्वास नली का सुधार: सूर्य नमस्कार करने से श्वास नली की सफाई होती है, जिससे श्वास के संबंधित रोगों में लाभ होता है।
4. प्राण शक्ति का विकास: इस प्राणायाम के द्वारा शरीर में प्राण शक्ति का विकास होता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।

यह सुविधाओं का संग्रह है, और इन्हें नियमित रूप से अभ्यास करने से और भी बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। ध्यान दें कि यह सूर्य नमस्कार के लाभ संबंधित व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर भी निर्भर करते हैं।

2. उत्थानासन (Utkatasana - Chair Pose): यह योगासन गर्दन, कंधे, पेट, जांघों, और घुटनों को मजबूत करने में मदद करता है, और गैलरी को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है।


यहाँ उत्थानासन (Utkatasana - Chair Pose) करने का तरीका है:

1. पहले एक सीधी और खड़ी जगह पर खड़े हो जाएं। अपने पैरों को हैप्पिंग दूरी पर रखें।
2. अब अपने हाथों को आगे की ओर बढ़ाएं, और उन्हें अपने सिर के सामने उठाएं।
3. अपने श्वास को गहरा करें और अपने पैरों को बेंध लें, जैसे कि आप एक कुर्सी पर बैठ रहे हों।
4. ध्यान दें कि आपके पीठ, गर्दन और पैरों का समान स्थिति में रहें।
5. ध्यान दें कि आपके नीचे के दिलाएं को पूरी तरह से तनाव में रखें।
6. ध्यान दें कि आपकी नीचे की पैरों की ऊंचाई की सीमा कम से कम 90 डिग्री हो।
7. ध्यान दें कि आप नीचे की ओर झुके हुए नहीं हैं। आपकी पीठ सीधी होनी चाहिए।
8. संवेदनशीलता को बनाए रखें और समय के अनुसार इस स्थिति में रहें।
9. ध्यान दें कि सांसें सामान्य हैं और आप स्थिति में सुविधा से रह सकते हैं।
10. स्थिति को छोड़ने के लिए सांसों को गहरा करें और अपने हाथों को उठाकर सीधे हो जाएं।

ध्यान दें कि यदि आप पहली बार इस आसन को कर रहे हैं, तो शुरू में आपको थोड़ा समय लग सकता है ताकि आप इसे सही तरीके से कर सकें। धीरे-धीरे अभ्यास करते रहें और आसन की गहराई को बढ़ाते रहें।


उत्थानासन (Utkatasana - Chair Pose) करने से कई फायदे हो सकते हैं, जैसे:

1. मांसपेशियों का मजबूत होना: इस आसन को करने से आपकी पैरों, जांघों, कमर, और पेट की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।
2. कोर मजबूती: यह आसन कोर मस्तिष्क को स्थिर रखने में मदद करता है और कोर मस्तिष्क की मजबूती को बढ़ाता है।
3. अच्छा पाचन: यह आसन पाचन क्रिया को सुधारता है और पेट की चर्बी को कम करने में मदद करता है।
4. संतुलित श्वासनली का विकास: इस आसन से श्वासनली का संतुलन बना रहता है, जिससे सांस लेने की क्षमता बढ़ती है।
5. विकसित सांत्वना: इस आसन को करने से मानसिक तनाव कम होता है और सांत्वना बढ़ती है।

ये फायदे उत्थानासन को नियमित रूप से करने से मिल सकते हैं, लेकिन ध्यान दें कि किसी नए व्यायाम योजना की शुरुआत से पहले एक व्यावसायिक सलाहकार से परामर्श लेना स्वास्थ्य के लिए हमेशा अच्छा होता है।

3. वीरभद्रासन (Virabhadrasana - Warrior Pose): यह योगासन बाहों, पेट, जांघों, और घुटनों को मजबूत करता है, साथ ही गैलरी को कम करने में मदद कर सकता है।


वीरभद्रासन (Virabhadrasana - Warrior Pose) को करने का तरीका निम्नलिखित है:

1. सबसे पहले, एक सीधे और खड़े जगह पर खड़े हो जाएं। अपने पैरों को अबाध दूरी पर रखें।
2. फिर, अपने दाएं पैर को आगे की ओर बढ़ाएं और उसे लगभग 90 डिग्री कोण में मोड़ें। आपके बाएं पैर को भी बाहर की ओर बढ़ाएं और उसे भी लगभग 90 डिग्री कोण में मोड़ें।
3. अब आपके दाएं पैर के घुटने को बाएं पैर के घुटने के सामने स्थित करें।
4. ध्यान दें कि आपके गर्दन और बाएं हाथ को सीधे रखें और दाहिने हाथ को आगे की ओर बढ़ाएं, जैसे कि आप किसी तलवार को उठा रहे हों।
5. अब धीरे-धीरे अपने दाएं हाथ को उठाएं और उसे ऊपर की ओर ले जाएं, जोड़ने के लिए दाहिने हाथ को उठाएं।
6. आपके आँखें आपके दायें हाथ की उंगली की ओर होनी चाहिए।
7. इस स्थिति में रहें और गहरी साँस लें।
8. समय के अनुसार, स्थिति को छोड़ें और शांति से शुरुआती स्थिति में लौटें।

यह आसन शारीरिक क्षमता और संतुलन को बढ़ाने के साथ-साथ मानसिक शक्ति को भी विकसित करता है। ध्यान दें कि इसे सही ढंग से करने के लिए धीरे-धीरे अभ्यास करें और ध्यान लगाकर स्थिर रहें।


वीरभद्रासन (Virabhadrasana - Warrior Pose) करने से कई शारीरिक और मानसिक फायदे होते हैं। इनमें से कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

1. मांसपेशियों का मजबूत होना: वीरभद्रासन के अभ्यास से पैरों, जांघों, कमर, और बाहु की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।
  
2. संतुलित स्थिति की शिक्षा: इस आसन को करते समय संतुलित स्थिति में रहने की प्रशिक्षण मिलता है, जो शारीरिक संतुलन को सुधारता है।

3. स्ट्रेस कम करना: यह आसन स्ट्रेस को कम करने में मदद करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।

4. कोर मजबूती: वीरभद्रासन के अभ्यास से कोर मस्तिष्क की मजबूती और संतुलन में सुधार होता है।

5. कमर की मजबूती: यह आसन कमर को मजबूत बनाता है और कमर के दर्द को कम करने में मदद करता है।

6. आत्म-विश्वास की वृद्धि: यह आसन आत्म-विश्वास को बढ़ाता है और स्थिरता का अनुभव कराता है।

वीरभद्रासन को नियमित रूप से करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होती है और आत्म-संयंत्रितता को विकसित करता है।

4. भुजंगासन (Bhujangasana - Cobra Pose): इस योगासन का अभ्यास करने से पेट, कमर, और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत किया जा सकता है, और फैट को कम करने में मदद कर सकता है।

भुजंगासन (Bhujangasana - Cobra Pose) को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

1. सबसे पहले, एक सीधे और फ्लैट सतह पर पेट के बल लेट जाएं। आपके पैर एक-दूसरे के समान हों और आपके टोंग पैरों की दिशा में हों।
2. अब अपने हाथों को शरीर के साथ सीधे रखें, और आपके खोपड़े के समीप ले जाएं।
3. आपके अंगुलियों को आपके कंधों के समीप रखें, और आपके कोल्हू को बाहर की ओर फैलाएं।
4. आपके पैरों को जमीन पर लगाए रखें, और अपने श्वास को सामान्य रखें।
5. अब, अपने श्वास को धीरे से ले और धीरे से अपने सीने को ऊपर उठाएं, जबकि आपके हाथ सीधे हों और आपके कोल्हू से संपर्क में रहें।
6. सीना को अधिक से अधिक बाहर की ओर उठाने के बाद, अपने चेहरे को आसमान की ओर देखें और कंधों को पीछे की ओर स्थिति में रखें।
7. आसन को 15-30 सेकंड तक या अपनी आराम स्तिथि में रहें।
8. आसन को छोड़ने के लिए, धीरे से श्वास छोड़ें और धीरे से अपने शरीर को ज़मीन पर ले आएं।

यह आसन पीठ, कंधों, और पेट को मजबूत बनाता है, साथ ही साँस लेने की क्षमता को भी बढ़ाता है। ध्यान दें कि आपके शरीर को दर्द या असहजता का अनुभव होने पर आसन को तुरंत छोड़ दें और किसी योग शिक्षक की सलाह लें।

भुजंगासन (Bhujangasana - Cobra Pose) करने से कई शारीरिक और मानसिक फायदे होते हैं। इनमें से कुछ मुख्य फायदे निम्नलिखित हैं:

1. कमर की मजबूती: यह आसन कमर को मजबूत बनाता है और कमर के दर्द को कम करने में मदद करता है।
  
2. स्पाइन की सुधार: भुजंगासन आपकी स्पाइन (रीढ़ की हड्डी) को सुधारता है और इसे लचीला बनाता है।

3. चेहरे की खूबसूरती: इस आसन को करने से चेहरे की त्वचा में रक्त संचार बढ़ता है और चेहरे की खूबसूरती में सुधार होता है।

4. पेट की सामर्थ्य: यह आसन पेट की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और पाचन क्रिया को सुधारता है।

5. हृदय की सेहत: भुजंगासन दिल की सेहत को बढ़ाता है और रक्त संचार को सुधारता है।

6. स्ट्रेस कम करना: यह आसन मानसिक स्थिति को स्थिर और शांत करता है, और स्ट्रेस को कम करने में मदद करता है।

7. ध्यान की शक्ति: इस आसन को करने से ध्यान की शक्ति बढ़ती है और मानसिक स्थिरता का अनुभव होता है।

ये फायदे भुजंगासन को नियमित रूप से करने से हो सकते हैं। योग को सीखने और अभ्यास करने से पहले एक पेशेवर योग शिक्षक की मार्गदर्शन और सलाह लें।

5. अर्ध चन्द्रासन (Ardha Chandrasana - Half Moon Pose): यह योगासन बाल को मजबूत करता है, साथ ही कमर, पेट, और पीठ की मांसपेशियों को भी मजबूत कर सकता है, और गैलरी को कम करने में मदद कर सकता है।


अर्ध चन्द्रासन (Ardha Chandrasana - Half Moon Pose) को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

1. सबसे पहले, एक सीधे और फ्लैट सतह पर खड़े हो जाएं। आपके पैर एक-दूसरे के समान हों और आपके हाथ आपके पास हों।
2. अब, अपने दाहिने पैर को कुछ आगे की ओर बढ़ाएं और आपके वजन को उस पैर पर ले आएं। आपके दाहिने पैर का पंजा और खोपड़े के बीच में एक छोटा सा अंतर होना चाहिए।
3. अब, अपने बाएं हाथ को आसमान की ओर उठाएं, और आपके आँखें उसी दिशा में देखें। आपके बाएं हाथ को खोपड़े के ऊपर के ओर ले जाएं।
4. ध्यान दें कि आपके बाएं हाथ का खोपड़ा नीचे की ओर मुड़ा होना चाहिए और आपके हृदय को आसमान की ओर उठाना चाहिए।
5. स्थिति में रहते हुए, आपको ध्यान देना चाहिए कि आपका शरीर एक सीधी और समानता से खड़ी हो।
6. धीरे-धीरे सांस छोड़ें और स्थिति को 15-30 सेकंड तक बनाए रखें।
7. स्थिति से बाहर आने के लिए, धीरे-धीरे अपने हाथों और पैरों को सामान्य स्थिति में लाएं।

अर्ध चन्द्रासन करने से पूरे शरीर की मजबूती और संतुलन बढ़ता है, कामान की अधिकता को दूर किया जाता है, और संवेदनशीलता को बढ़ाया जाता है। ध्यान दें कि इस आसन को करते समय समय के अनुसार सहायता के साथ अभ्यास करें।

अर्ध चन्द्रासन (Ardha Chandrasana - Half Moon Pose) करने से कई शारीरिक और मानसिक फायदे होते हैं। इनमें से कुछ मुख्य फायदे निम्नलिखित हैं:


1. कमर की मजबूती: यह आसन कमर को मजबूत और लचीला बनाता है। इससे कमर के दर्द में राहत मिलती है और स्पाइन को सुधारता है।

2. कंधों और पेट की मांसपेशियों को लचीला बनाए रखना: यह आसन कंधों, पेट, और बैक मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और उन्हें लचीला बनाए रखता है।

3. संतुलन और स्थिरता की शिक्षा: अर्ध चन्द्रासन को करने से शरीर की संतुलन और स्थिरता में सुधार होता है, जो शारीरिक और मानसिक तौर पर लाभदायक होता है।

4. चार आयाम की विस्तृतता: यह आसन कंधों, पांवों, हथेलियों और पेट की मांसपेशियों को विस्तृत करता है, जिससे शारीरिक संभावनाओं का विकास होता है।

5. मानसिक शांति: इस आसन को करते समय ध्यान और शांति में सुधार होता है, जो मानसिक स्थिति को स्थिर और प्रशांत करता है।

6. स्पष्टता और ध्यान की शक्ति: यह आसन शारीरिक और मानसिक तौर पर स्पष्टता और ध्यान की शक्ति को विकसित करता है।

ये फायदे अर्ध चन्द्रासन को नियमित रूप से करने से हो सकते हैं। ध्यान दें कि आप इस आसन को सही तरीके से करते हुए दर्द या असहजता का अनुभव करने पर तुरंत आसन को छोड़ दें और एक योग शिक्षक की सलाह लें।

यदि आप निम्नलिखित पांच आसनों को एक साथ करते हैं, तो आपको शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य में कई चमत्कारिक फायदे हो सकते हैं:

1. सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar): सूर्य नमस्कार एक पूर्ण शरीर का योगासन है जो आपके शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य को संतुलित करने में मदद करता है। यह शारीरिक लचीलापन और संतुलन को बढ़ाता है, तनाव को कम करता है, और मानसिक तथा आत्मिक शक्ति को बढ़ाता है।

2. उत्थानासन (Utkatasana - Chair Pose): यह आसन पूर्ण शरीर को सजीव और सामर्थ्यपूर्ण बनाता है, कोर मस्तिष्क की मजबूती को बढ़ाता है, और पाचन क्रिया को सुधारता है।

3. भुजंगासन (Bhujangasana - Cobra Pose): यह आसन कमर की मजबूती को बढ़ाता है, स्पाइन को सुधारता है, और शारीरिक संतुलन को बढ़ाता है।

4. अर्ध चन्द्रासन (Ardha Chandrasana - Half Moon Pose): यह आसन कमर की मजबूती को बढ़ाता है, और संतुलन और स्थिरता को बढ़ाता है।

5. वीरभद्रासन (Virabhadrasana - Warrior Pose): यह आसन पूरे शरीर की मजबूती को बढ़ाता है, और आत्म-विश्वास को बढ़ाता है।

इन पांच आसनों को एक साथ करने से आपका शरीर, मन, और आत्मा संतुलित होता है, जो आपको स्वस्थ्य, प्रफुल्लित और शक्तिशाली बनाता है। ध्यान दें कि सही तरीके से आसन करने के लिए एक पेशेवर योग शिक्षक की मार्गदर्शन और सलाह लें।

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 ( ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )   अर्जुन उवाच किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं पुरुषोत्तम। अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥ अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन। प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः॥ हे मधुसूदन! यहाँ अधियज्ञ कौन है? और वह इस शरीर में कैसे है? तथा युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा अंत समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं श्रीभगवानुवाच अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः॥ श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्‌। अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर॥ उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, ह...

ज्ञानकर्मसंन्यास योगो नाम चतुर्थोऽध्यायः

  ( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय ) श्री भगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌।  विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌॥ श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः। स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप॥ हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः। भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌॥ तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात गुप्त रखने योग्य विषय है अर्जुन उवाच अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः। कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥ अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था। तब मैं इस बात को कैसे समूझँ कि आप ही ने कल्प के आदि मे...

दैवासुरसम्पद्विभागयोगो नाम षोडशोऽध्यायः

  (फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)   श्रीभगवानुवाच  अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌॥ श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए ध्यान योग में निरन्तर दृढ़ स्थिति (परमात्मा के स्वरूप को तत्त्व से जानने के लिए सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में एकी भाव से ध्यान की निरन्तर गाढ़ स्थिति का ही नाम 'ज्ञानयोगव्यवस्थिति' समझना चाहिए) और सात्त्विक दान (गीता अध्याय 17 श्लोक 20 में जिसका विस्तार किया है), इन्द्रियों का दमन, भगवान, देवता और गुरुजनों की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मों का आचरण एवं वेद-शास्त्रों का पठन-पाठन तथा भगवान्‌ के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्टसहन और शरीर तथा इन्द्रियों के सहित अन्तःकरण की सरलता अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌। दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌॥ मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण (अन्तःकरण और इन्द्रियों के द्वारा जैसा निश्चय किया हो, वैसे-का-वैसा ही प्रिय शब्दों म...